बिखरे मोती

01-10-2025

बिखरे मोती

अमरेश सिंह भदौरिया (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

वक़्त की उँगलियों से
फिसल कर
ज़मीन पर गिरते जाते हैं
हमारे सपने, 
बिना किसी थाली के
बिना किसी आरती के, 
जैसे नदी छोड़ दे अपना किनारा
और समुद्र भूल जाए अपनी लहरों को। 
 
हर मोती
एक कहानी है—
किसी अनकहे भाव की, 
किसी बिन-पढ़ी चिट्ठी की, 
किसी टूटी उम्मीद की। 
 
हम उन्हें चुनते हैं
निगाहों की पोरों से, 
धड़कनों के रेशम में पिरोते हैं, 
पर वे फिर भी
मुट्ठियों से फिसलते रहते हैं
आवाज़ की तरह, 
याद की तरह, 
सपने की तरह। 
 
फिर भी
हमारे भीतर
एक अडिग उजाला
यह विश्वास भरता है—
हर बिखरा मोती
किसी दिन
फिर माला बनेगा
और उस माला में
हमारे जीवन का
नया गीत गूँजेगा। 

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