अमरेश सिंह भदौरिया - मुक्तक - 001
अमरेश सिंह भदौरिया1.
कहीं भक्त बदलते हैं,
कहीं भगवन बदलते हैं।
गिरगिट की तरह आजकल,
इंसान बदलते हैं।
किस पर करें भरोसा ,
जताएं यक़ीन किस पर ;
कपड़ों की तरह लोग अब,
ईमान बदलते हैं।
2.
अंगारों से जब-जब
मैं हाथ मिलाता हूँ।
जलन के हर बार
अहसास नए पता हूँ।
दूसरे के अनुभव से
बेशक तुम्हारा काम चले,
अनुभव हक़ीक़त के लिए
मैं हाथ जलाता हूँ।
2 टिप्पणियाँ
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Shandar rachana likhi hai aap ne aap ko dil se salam
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Sir...... Amazing!