हरसिंगार

15-09-2025

हरसिंगार

अमरेश सिंह भदौरिया (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

रात की चुप्पी में
चुपचाप झरता है
हरसिंगार। 
 
कोई कोलाहल नहीं, 
कोई प्रदर्शन नहीं, 
बस मौन में
अपनी सुगंध बिखेरना
जानता है। 
 
अंधकार में भी
जिनकी उपस्थिति
सुगंध से महसूस होती है, 
वे हरसिंगार ही होते हैं। 
 
वो सम्बन्ध, 
वो प्रेम, 
वो स्मृतियाँ, 
जो जीवन में कभी
मुखर नहीं होते, 
पर अपनी सच्चाई से
मौन ही
सब कुछ कह जाते हैं। 
 
प्रेम भी कभी-कभी
हरसिंगार की तरह होता है—
साँझ ढले खिलता है, 
रात्रि भर सुगंध देता है, 
और प्रातः तक
मिट्टी में मिल जाता है। 
 
ताकि अगले दिन
फिर कोई राहगीर
उन गिरे फूलों को देख
याद कर सके
कि मौन का भी
एक अलग सौंदर्य होता है। 
 
हरसिंगार—
जो प्रेम की तरह
मौसम का मोहताज नहीं, 
बस अंतर्मन की ऋतु चाहता है। 

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