भावनाओं का बंजरपन

15-05-2025

भावनाओं का बंजरपन

अमरेश सिंह भदौरिया (अंक: 277, मई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

मन
अब बीज नहीं बोता—
सिर्फ़ दीवारों पर
पत्थर उगाता है
और कैलेंडर टाँग देता है। 
 
संवेदनाएँ
सूखते तालाब-सी
हर मौसम
और सिकुड़ती जाती हैं। 
 
किसी की पीड़ा
अब आँकड़ों में दर्ज होती है, 
किसी की वेदना
विचार-विमर्श का
एक विषय बनकर रह जाती है। 
 
चेहरों की मुस्कानें
अब मुखौटे लगती हैं, 
और आँखों में
नींद की जगह
थकी हुई प्रतीक्षा पलती है। 
 
हमने
प्रेम को पोस्ट, 
दुख को स्टेटस, 
रिश्तों को नेटवर्क
और जीवन को
नोटिफ़िकेशन बना दिया है। 
 
अब कोई नहीं
जोतता मन की ज़मीन, 
न ही शब्दों की वर्षा करता है—
बस उगते हैं
तर्कों के काँटे, 
और काटते हैं
मौन की झाड़ियाँ। 
 
यह समय
सूचनाओं से सींचा गया, 
पर भावनाओं से
सूखा हुआ है। 
 

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