जब नियति परीक्षा लेती है
अमरेश सिंह भदौरियाजब नियति परीक्षा लेती है।
वह कठिन यातना देती है।
1.
विघ्न और बाधा सहकर,
पुरुषार्थ थके कुछ रह-रहकर,
सर्वस्व न्योछावर होने पर,
मरघट में जाकर सोने पर,
सत्य-धर्म के पालन की,
मुश्किलें कहाँ कम होती है।
2.
रिश्तों में जहाँ दिखे स्वारथ,
होती हर रोज महाभारत,
अज्ञातवास की लिए घुटन,
पांडव विचरण करते वन-वन,
अपमान घूँट पीकर पांचाली,
अश्रुओं से नयन भिगोती है।
3.
डरा-डरा हर पात दिखे,
सहमी-सहमी सी प्रात दिखे,
जब दिनकर भी लाचार दिखे,
बदला सब कारोबार दिखे,
कहना मुश्किल हो जाता है,
क्या सुबह भी ऐसी होती है।
4.
क़लम चले यूँ झुक-झुककर,
सत्य लिखे कुछ रुक-रुककर,
फिर भाग्य मनुजता का फूटे,
किश्ती जब नाविक ख़ुद लूटे,
कुनबा पूरा ढह जाता है,
यूँ परिधि विखंडित होती है।
5.
वायस और शृगाल सभी,
मिल करते ख़ूब धमाल सभी,
टुकड़ों में उपवन बँट जाता,
मनचाहा हिस्सा छँट जाता,
रह जाता हंस हाथ मलकर,
जब क़िस्मत खोटी होती है।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अधनंगे चरवाहे
- अनाविर्भूत
- अहिल्या का प्रतिवाद
- अख़बार वाला
- आँखें मेरी आज सजल हैं
- आज की यशोधरा
- आरक्षण की बैसाखी
- आस्तीन के साँप
- आख़िर क्यों
- इक्कीसवीं सदी
- उपग्रह
- कोहरा
- क्यों
- खलिहान
- गाँव - पहले वाली बात
- चुप रहो
- चुभते हुए प्रश्न
- चैत दुपहरी
- जब नियति परीक्षा लेती है
- तितलियाँ
- दिया (अमरेश सिंह भदौरिया)
- दीपक
- देह का भूगोल
- धरती की पीठ पर
- नदी सदा बहती रही
- पहली क्रांति
- पीड़ा को नित सन्दर्भ नए मिलते हैं
- पुत्र प्रेम
- प्रभाती
- प्रेम की चुप्पी
- बंजर ज़मीन
- भगीरथ संकल्प
- भावनाओं का बंजरपन
- माँ
- मुक्तिपथ
- मुखौटे
- मैं भला नहीं
- लेबर चौराहा
- शस्य-श्यामला भारत-भूमि
- सँकरी गली
- सरिता
- चिन्तन
- सामाजिक आलेख
- शोध निबन्ध
- कहानी
- सांस्कृतिक आलेख
- ललित कला
- साहित्यिक आलेख
- पुस्तक समीक्षा
- लघुकथा
- कविता-मुक्तक
- हास्य-व्यंग्य कविता
- गीत-नवगीत
- विडियो
-
- ऑडियो
-