दिल से ग़ज़ल तक

 

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वो है रहता ख़फ़ा ख़फ़ा मुझसे
जाने कैसी हुई ख़ता मुझसे 
 
पास आने की प्यास आँखों में 
फिर भी वो दूर दूर था मुझसे 
 
होंठ थे बन्द पर नयन बोले
जो कभी कह नहीं सका मुझसे
 
फ़ासला दरमियाँ किनारों सा 
वो न जाने क्यों रख रहा मुझसे
 
होती है क्या वफ़ा बताओ कुछ 
होके अनजान पूछता मुझसे 
 
ग़म से मायूस हूँ हुई ‘देवी’ 
दर्द बेआश्ना मिला मुझसे

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