दिल से ग़ज़ल तक (रचनाकार - देवी नागरानी)
2. सागर के तट पे आते ही जिसने रची ग़ज़ल
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सागर के तट पे आते ही जिसने रची ग़ज़ल
बनके लहर वो बह रही है हर गली ग़ज़ल
यह शायरी क्या चीज़ है अल्फ़ाज़ का सुरूर
सुनते ही इक नशे की तरह छा गई ग़ज़ल
ठहराव का न था जहां नामोनिशाँ वहीं
अलबेली इक मचलती नदी सी लगी ग़ज़ल
जब जब उठा तूफ़ान था सोचों में यूँ मची
हलचल थी शब्द शब्द में उफनती नदी ग़ज़ल
गुमनाम रास्तों से गुज़रती थी जब कभी
शायर की देख शोखियाँ पथरा गयी ग़ज़ल
जिसमें कली का ज़िक्र था, ख़ुशबू थी फूल की
भंवरों को देख-देख खिली मनचली ग़ज़ल
मंज़िल मिलेगी कब उसे, उसको न था पता
‘देवी’ मुसाफिरों सी भटकती रही ग़ज़ल
विषय सूची
- समर्पण
- दिल से ग़ज़ल तकः एक सन्दर्भ
- एक ख़ुशगवार सफ़र-दिल से ग़ज़ल तक
- दिल से ग़ज़ल तक अज़, देवी नागरानी
- मेरी ओर से—दिल से ग़ज़ल तक
- 1. सफ़र तय किया यारो दिल से ग़ज़ल तक
- 2. सागर के तट पे आते ही जिसने रची ग़ज़ल
- 3. सुन सको तो सुन लो उनकी दर्द जिनके दिल में है
- 4. न जाने क्यों हुई है आज मेरी आंख कुछ यूँ नम
- 5. ज़िन्दगी करना बसर उसके सिवा मुश्किल मगर
- 6. ग़लत फ़हमी की ईंट छोटी थी फिर भी
- 7. माफ़ कैसे गुनह हुआ यारो
- 8. इल्म होगा उसको फिर तन्हाइयों का
- 9. हमसफ़र बिन है सफ़र ये जाने मंज़िल है कहाँ
- 10. ग़म कतारों में खड़े बाहर, मैं भीतर था निहाँ
लेखक की कृतियाँ
- ग़ज़ल
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- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- तू ही एक मेरा हबीब है
- नाम तेरा नाम मेरा कर रहा कोई और है
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
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