दिल से ग़ज़ल तक

 

 2122    2122    2122    212  
 
रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर
तीरगी को ज़ब्त वो करती रहेगी रात भर
 
दूर तक फैले उजाले झिलमिलाते है जहाँ 
बनके जुगनू रौशिनी देती रहेगी रात भर 
 
साथ पाने, साथ रहने की तमन्ना जागी है
अब तबीयत यूँ परेशाँ सी रहेगी रात भर
 
आती जाती हैं बहारें देख अपने सामने
साथ में आहट खिजाँ की भी रहेगी रात भर
 
शबनमी बूँदे किये जाती है जो सरगोशियाँ
कानों में वो गूँजती ‘देवी’ रहेगी रात भर

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