दिल से ग़ज़ल तक


1222    1222    1222    1222
 
न जाने क्यों हुई है आज मेरी आँख कुछ यूँ नम
न सीने में कोई है दर्द, या दिल में ही कोई ग़म
 
गले मिलकर कभी आँखों से ग़म यूँ भी पिघलता है
जो बन सैलाब अश्कों का किनारों को करे पुरनम
 
वो बचपन की जवानी की, जो यादें हैं बसी दिल में
जवाँ पीढ़ी को लगता है बड़े पैदाइशी हैं हम
 
उठी डोली थी बेटी की बजी शहनाई सुर में जब
नज़र से तब हुई ओझल मगर दिल में रही हरदम
 
पुराने कुछ घरौंदे रेत के दिल में हैं बाक़ी अब
जिए पल पल जो हमने साथ वो भी तो नहीं थे कम
 
तेरी हर याद पर भर आती है दिल जाने क्यों ‘देवी’
कि जैसे भोर तक बरसे है दिल पर ख़ुशनुमा शबनम

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