दिल से ग़ज़ल तक

 

221    2121    1221    212
 
मिट्टी को देके रूप नया बुत बना दिया 
हाथों से फिर तराश के चेहरा नया दिया
 
पहले तराशा हाथ से तुमने वुजूद को
फिर शहर भर के हाथों में पत्थर थमा दिया
 
तारीकियों के साए जब हो गये घने 
रौशन चराग़ यादों का दिल ने जला दिया
 
जो जल उठा चराग़ था दिल में यों यक-ब-यक
क्यों आड़ में ग़ुरूर की उसको बुझा दिया
 
ख़तरे में देख अपनों को आया उबाल जब 
तब ख़ून अपना पानी समझ कर बहा दिया 
 
छल को न कर सका कोई जब बेनक़ाब तब 
‘देवी’ ने हर नक़ाब को चेहरा बना दिया

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