दिल से ग़ज़ल तक (रचनाकार - देवी नागरानी)
एक ख़ुशगवार सफ़र-दिल से ग़ज़ल तक
ग़ज़ल एक ऐसी विधा जो दिल की बात करती है। देवी नागरानी जी ने भी शायद यही सोच कर इस किताब का नाम भी ‘दिल से ग़ज़ल तक’ रखा है। उनका सफ़र ग़ज़ल के साथ बहुत अरसे से चल रहा है। इसी राह में उनसे मेरी मुलाक़ात मुंबई में हुई थी। हम दोनों के उर्दू ग़ज़ल के उस्ताद आर पी शर्मा महरिष जी थे जिनके घर पर हम मिलते थे। महरिष जी और उनके परिवार के सदस्यों से हम दोनों को बहुत अपनापन और प्यार मिला। देवी जी अब अमरीका में हैं और मैं हैदराबाद में, फिर भी ये रिश्ता क़ायम रहा। ग़ज़ल ने ही हमको हमसफ़र बनाया इस ख़ुशगवार सफ़र में।
ग़ज़ल की ये ख़ास बात है कि उसका हर शेर कोई मुकम्मल बात करता है मगर हर शेर एक ही बहर या मीटर में होता है। ये रंग बिरंगे मोती जैसे हैं जो एक ही आकार के होते हैं पर रंग अलग अलग होते हैं जिन को एक साथ पिरो कर ख़ूबसूरत माला बनती है।
चलिए हम देखते हैं के देवी जी की इन ग़ज़लों की माला में कैसे कैसे रंग उभर आए हैं।
गद्य और पद्य, दोनों में शब्दों का संजोग है, लेकिन उन का ज़ायक़ा अलग है। अगर नस्र शर्बत सा है तो शाइरी शराब सी।
यह शायरी क्या चीज़ है अल्फ़ाज़ का सुरूर
सुनते ही इक नशे की तरह छा गई ग़ज़ल
शायर की नज़र सिर्फ़ बाहर ही नहीं, अपने भी दिल में बार बार झाँकने पर मजबूर करती है।
मुन्तज़िर हो ख़ुद से मिलने के लिए तो चल पड़ो
राह में रुकना नहीं, पामाल उस मंज़िल में है
हर इंसान की ज़िन्दगी में मुसीबतें होती हैं और वो परेशान हो जाता है।
उलझनों का दौर बीता पर न सुलझे मामले
बीच का आसान हल पाना लगा मुश्किल मगर
रिश्ते बनने में बहुत देर लगती है, मगर बिगड़ पल भर में जाते हैं। इसका एक कारण अना या अहंभाव होती है जो दिलों के बीच दीवारें खड़े कर देती हैं।
ग़लत फहमी की ईंट छोटी सी फिर भी
अना की वो दीवार चौड़ी थी कितनी
सच अक्सर कड़वा होता है और कड़वाहट सभी को पसंद नहीं होती।
ग़लत को ग़लत क्या कहा मैंने लोगो
मैं उनकी नज़र में ही मुजरिम खड़ी थी
जब बच्चे छोटे होते हैं तो उनको अपने दादा दादी, नाना नानी से बहुत लगाव होती है और उनको बहुत प्यार देते हैं। मगर देखते-देखते वो बड़े हो जाते हैं और उनको इन बुजुर्गों के लिए वक़्त नहीं होता ।
कहाँ हैं गए सारे बच्चों के बच्चे
बड़े प्यार से जो थे आकर लिपटते
सपने सच होना, ये क़िस्मत की बात है। मगर कितनी भी बंजर ज़मीन हो, एक उमंग से इसके बीज बोते रहते हैं लोग क्यूँकि उम्मीदों पर ही दुनिया क़ायम है।
सींच पाई न सपनों को ‘देवी’ कभी
बीज सहरा में फिर भी वो बोती रही
इस दुनिया में कितने हादसे होते हैं जब इंसान के सर से छत भी उड़ जाती है।
वो जो बेघर हुए, दरबदर आज तक
पूछ लो उनसे होता है क्या आशियाँ
शीशे के घरों में रहने वालों को दूसरों के घरों में पत्थर नहीं फेंकने चाहिए । जब बाहर सब के हाथों में पत्थर हैं तो कांच की नगरी की खैर नहीं।
हाथ में सबके एक पत्थर है
काँच का ये कोई नगर तो नहीं
ऐसे कुछ रिश्ते होते हैं, जो नाम के लिए या ज़माने के डर से निभाए जाते हैं।
उसकी मेरी दोस्ती में थी सुलह
साथ देने का कोई वादा न था
इस जहां में जिधर भी देखो अमन और शांति की कमी है। लोग एक दूसरे से डरने लगे हैं।
कहीं सर किसी का सलामत नहीं है
कहो कैसे कह दें ये आफ़त नहीं है
ये सच है कि कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता। ज़िंदगी में महरूमी का एहसास बाक़ी रह जाता है।
पाँव ढांपें या ढकें सर, या खुदा
है रिदा क़द से भी छोटी क्या करें
शाइरी ऐसी अक़ीदत है जिस से रूहानी सुकून मिलता है।
शायरी इक इबादत है
देती दिल को ये राहत है
देवी नागरानी जी को अपनी शायरी से यूँ ही राहत मिलती रहे, और यूँ ही ग़ज़ल से दिल तक का सफ़र जारी रहे, यही मेरी दुआ है।
—एलिज़ाबेथ कुरियन ‘मोना’
(एलिज़ाबेथ कुरियन ‘मोना’ अंग्रेज़ी, हिन्दी, उर्दू और मलयालम में लिखती हैं। ग़ज़ल/कविता/तर्जुमा की अब तक उनकी 21 किताबें हैं। उन्होंने भारतीय रिज़र्व बैंक, मुंबई से रिटायर हो कर हैदराबाद में रहती हैं।)
<< पीछे : दिल से ग़ज़ल तकः एक सन्दर्भ आगे : दिल से ग़ज़ल तक अज़, देवी नागरानी >>विषय सूची
लेखक की कृतियाँ
- ग़ज़ल
-
- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- तू ही एक मेरा हबीब है
- नाम तेरा नाम मेरा कर रहा कोई और है
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
- आप-बीती
- कविता
- साहित्यिक आलेख
- कहानी
- अनूदित कहानी
- पुस्तक समीक्षा
- बात-चीत
- अनूदित कविता
- पुस्तक चर्चा
- बाल साहित्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-