दिल से ग़ज़ल तक


2122    2122    2122    212
  
सुन सको तो सुन लो उनकी दर्द जिनके दिल में है
मत सुनाओ उनको अपनी जो उसी मुश्किल में है
 
अपनी ग़लती से जो सीखे ये हुनर आहिल में है
हाथ पर धर हाथ बैठे, ये तो फ़न जाहिल में है
 
दोस्त गुल हैं गुलिस्तां के सच ये तुम भी जान लो
पूछो उससे साथ जो बैठा हुआ महफ़िल में है
 
मारो जितना जी में आए वो बचाएगा मुझे
“देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए क़ातिल में है”
  
हमक़दम होकर चलो तुम ज़िन्दगी के साथ-साथ
है मज़ा कुछ कम सफ़र में, पर बहुत मंज़िल में है
 
ग़लतियों से अपनी सीखे वो ही बेहतर आदमी
बाद में कुछ और करना ही भला बिस्मिल में है
 
अपने भीतर की कला को जान लो पहचान लो 
उसको खोजो, उसको पाओ, ये कशिश इस पल में है
 
पल में तेरी, पल में मेरी, पल में किसकी भी नहीं
किसकी जीवन पूँजी कितनी इल्म वो आदिल में है
 
मुन्तज़िर हो ख़ुद से मिलने के लिए तो चल पड़ो
राह में रुकना नहीं, पामाल उस मंज़िल में है
 
डोलती नैया फंसी मंझधार में ‘देवी’ सुनो
पार उतरेगी भरोसा आज उस कामिल में है

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