दिल से ग़ज़ल तक

 

122    122    122    122
 
ये हमराज़ को उसने बोला ही होगा 
उसी ने ये फिर राज़ खोला ही होगा
 
वो टूटा, वो बिखरा, सिमटना था मुश्किल   
किसी ने तो दिल उसका तोड़ा ही होगा 
 
जो अमृत को पीकर ज़हर को उगल दे
वही दर हकीक़त संपोला ही होगा
 
बने दोस्त दुश्मन, किसी ने यक़ीनन
ज़हर बदगुमानी का घोला ही होगा
 
सच्चाई नहीं बन सकी ढाल जिसकी 
फंसा झूठ के जाल भोला ही होगा 
 
‘है लालच बुरी सी बला’ तू भी कहता
कभी तेरा मन भी तो डोला ही होगा
 
कहा ‘तेरा तेरा’ था नानक ने जैसे 
किसी ने न ऐसे तो तौला ही होगा 
 
वो था ग़ैर अनजान घर में जो आया 
किसी अपने ने दर को खोला ही होगा
 
किया बंद जिस चाबी ने ताला ‘देवी’ 
उसी ने ही फिर ताला खोला ही होगा

<< पीछे : 16 . शमअ पर वो था जला बेवजह आगे : 18. बेवफ़ा से मुलाक़ात होती रही >>

लेखक की कृतियाँ

ग़ज़ल
आप-बीती
कविता
साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो