दिल से ग़ज़ल तक

 

2122    2122    2122
 
इल्म होगा उसको फिर तन्हाइयों का
ज़ायक़ा जिसने लिया गुमनामियों का
 
जो न होगा आदी उन पाबंदियों का
होगा क़ायल कैसे वो आज़ादियों का
 
पूछो उससे भुखमरी क्या, फ़ाक़े हैं क्या
जिसने जीवन हो जिया महरूमियों का
 
उलझनों की ओढ़कर चादर न बैठो
करना होगा सामना नाकामियों का
 
कैसे जानोगे किनारे बैठ ‘देवी’ 
पानी में उतरे बिना गहराइयों का

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