दिल से ग़ज़ल तक

 

2122    1212    22
 
माफ़ कैसे गुनह हुआ यारो
वो सज़ा से ही बच गया यारो
 
था न ठहराव जिसकी बातों में
वो ज़बाँ से मुकर गया यारो
 
दोस्ती की दरार चौड़ी थी
बीच में अड़ गई अना यारो
 
आ रही दूर से जो आवाज़ें
सुन लो उनकी भी तुम सदा यारो
 
जो दग़ा पर दग़ा रहा करता
वो नहीं जानता वफ़ा यारो
 
रिश्ते नातों में पुख़्तगी करती
घर का आँगन हरा भरा यारो
 
वो ही ढोता रहा सलीब सदा
जो उसूलों पे चलता था यारो
 
हो गया चूर चूर 'देवी' दिल
तोड़ वादा वो जब चला यारो

<< पीछे : 6. ग़लत फ़हमी की ईंट छोटी थी फिर… आगे : 8. इल्म होगा उसको फिर तन्हाइयों… >>

लेखक की कृतियाँ

ग़ज़ल
आप-बीती
कविता
साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो