दिल से ग़ज़ल तक

 

122    122    122    122 
 
कहाँ हैं गए सारे बच्चों के बच्चे 
बड़े प्यार से जो थे आकर लिपटते 
  
जो आते ही घर में लगाते थे नारे    
लगी भूख दादी तू खाने को कुछ दे 
  
कभी रूठते थे कभी वो मनाते 
जो पल में झगड़ कर सुलह फिर से करते 
  
जो तू तू औ’ मैं मैं का था शोर बरपा 
न जाने कहाँ ले उड़े वो परिंदे
 
कहाँ गुम हुई हैं वो आवाज़ें उनकी  
जो सुनने को ये कान अब हैं तरसते
 
नहीं कोई हलचल है धड़कन में ‘देवी’  
दरीचे व दर अब हैं ख़ामोश रहते 

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