ज़िन्दगी का साथ शर्तों के बिना निभता नहीं है।
शर्त व्यापी जगत में
वह जीत में है, हार में है।
दो जनों के सख्य,
सारी प्रकृति के व्यवहार में है।
शर्त पूरी यदि न हो, उत्तप्त साँसों की धरा से,
देख कर तुम ही कहो, वह श्याम घन झरता कहीं है?
ज़िन्दगी का साथ शर्तों के बिना निभता नहीं है।
साथ की है शर्त क्या?
बस प्यार को तुम मान दोगे।
थक चलूँगी मैं जहाँ,
बढ़, बाँह मेरी थाम लोगे।
बिन सहारा नेह-बाती का मिले, तुम स्वयं देखो,
लौ लिये निष्कंप दीपक, प्यार का जलता नहीं है।
दे सके तुम प्रेम तो,
उस स्नेह का प्रतिदान दूँगी।
है अपेक्षा कुछ न तुमको,
बात कैसे मान लूँगी?
मनुज हैं सामान्य हम और सत्य तुम यह जान लो प्रिय,
एकतरफ़ा प्यार से यह मन सहज भरता नहीं है,
ज़िन्दगी का साथ शर्तों के बिना निभता नहीं है।