कुछ यादें
कुछ बातें
रत्ती भर मोहब्बत
माशा भर प्यार
छूट गया
उस गली के मोड़ पे
मिले गर
उठा कर
रख लेना।
बड़ा बेपरवाह सी हूँ,
कुछ न कुछ
छूट जाता है . . . हर बार . . .
वो गोलगप्पे की खटाई
लस्सी की मलाई
चौक के बीच कहीं
शायद छलक गयी
वो भाई का स्नेह
माँ का आँसू
चौखट पर कहीं
छोड़ आयी हूँ
मिले तो रख लेना
यूँ ही सिरफिरी सी हूँ न,
कुछ न कुछ छूट जाता
हर बार . . . हर बार . . .।