विशेषांक: कैनेडा का हिंदी साहित्य

05 Feb, 2022

पेड़ ये
ऐसे हरियाये फिर
जैसे कभी झड़े न थे, 
खा पछाड़ ओलों से 
धरती पर पड़े न थे। 
मुस्काते पत्तों के होंठ मोड़, 
खिलखिलाते
पतझड़ की याद छोड़। 
 
पेड़ ये, 
बस पेड़ नहीं, 
चिड़ियों के घर हैं
बच्चों का बचपन, 
चहक-चहक चढ़ जिन पर
विजयी से हर्षाए, 
यौवन की प्रेम पाती
तने-तने लिख आए। 
 
वृक्षों की ठंडी साँसें 
तपते तनों पर पंखा झलतीं हैं, 
ग़रीबों का महल हैं
मन्नत के धागे पहन खड़े
विपदाओं के प्रहरी हैं। 
तने तले बैठे मुस्काते हैं
सालिगराम, 
स्वीकारते सबका प्रणाम
वर्ग और वर्ण भेद बिना। 
 
एक पूरी दुनिया है इस पेड़ में 
जड़ से फुनगी तक . .
सब कुछ . . .
मंत्र है, तंत्र है, 
सबसे प्यार जताने को पॆड़, 
पूर्णत: स्वतंत्र है। 

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