विशेषांक: कैनेडा का हिंदी साहित्य

05 Feb, 2022

मज़बूत शरीर है यह जो दिखता 
अंदर मेरे भी है—
कोमल सा दिल, मेरा अपना। 
है धुँधली सी, पर हैं गहरी यादें, 
देखा है छुप–छुप
चुपके से आँसू पोंछते। 
भारी ज़िम्मेदारी है कंधों पर
पर फिर भी सदा मुस्काता, 
ज्यों पर्वत में रहता छिपा, 
मीठे पानी का स्रोता। 
मज़बूत शरीर में है मेरे भी, 
कोमल सा दिल, मेरा अपना। 

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