मज़बूत शरीर है यह जो दिखता
अंदर मेरे भी है—
कोमल सा दिल, मेरा अपना।
है धुँधली सी, पर हैं गहरी यादें,
देखा है छुप–छुप
चुपके से आँसू पोंछते।
भारी ज़िम्मेदारी है कंधों पर
पर फिर भी सदा मुस्काता,
ज्यों पर्वत में रहता छिपा,
मीठे पानी का स्रोता।
मज़बूत शरीर में है मेरे भी,
कोमल सा दिल, मेरा अपना।