प्रार्थना किया करता था
रोज़ मैं अपने भगवान से,
मुझको ऐ मालिक मिलवा दे
मेरी प्यारी माँ से।
वह माँ जिसकी पलकों का तारा हूँ मैं,
वह माँ जिसके जीने का सहारा हूँ मैं,
कभी जिसकी ऊँगली पकड़ के चला था मैं,
उसकी गोद में सोकर,
उसकी लोरियाँ सुनकर,
उसके मातृत्व प्रेम में,
पला बढ़ा था मैं।
वह मूरत है ममता और दुलार की,
वह सूरत है एक निश्छल प्यार की,
वह मेरे जीवन का आधार है
उससे ही मेरा जीवन साकार है
कर ऐसा कोई चमत्कार
ओ दुनिया के पालनहार
माँ की सेवा कर
मैं भी करूँ अपना जीवन साकार
प्रार्थना करते करते,
निकल गए कई वर्ष,
लगता था जैसे अब
ज़िन्दगी में नहीं है कोई हर्ष,
अब तो सब्र भी टूटने को था,
आँसुओं का समंदर जैसे फूटने को था।
क्या करूँ क्या न करूँ,
असमंजस की स्थिति में
मेरे विश्वास को अब
डर का दानव लूटने को था,
सोचते सोचते दिल रोया,
आँखों में आँसू आये,
रोते रोते झपकी लगी,
और इन आँखों में स्वप्न भर आये।
माँ को स्वप्न में सामने देख,
ख़ुशी के आँसू आये।
अचानक से आँख खुली,
वह स्वप्न नहीं, सच था।
माँ का हाथ मेरे सर पर,
और मेरा सर उनके चरणों में था।