दिन की शतरंजी बिसात पर
हर बार रखा मैंने
अपने मूड को उठा कर
तुम्हारे मूड की चाल के अनुसार
और पूरी कोशश करी
अपने मूड को बचाने की।
पर तुम्हारा मूड बदलते ही
पिट जाते हैं
मेरी युक्तियों के हाथी और वज़ीर!
बचती फिरती है मेरे उमंगों की रानी,
धैर्य के प्यादों के पीछे छिपता है,
मेरे अस्तित्व का राजा!
तुम्हारा ध्यान हटाने की कितनी भी कोशिश करूँ,
पर हर बार तुम्हारा मूड जीतता है
और मात खा जाता है मेरा मूड . . .