विशेषांक: कैनेडा का हिंदी साहित्य

05 Feb, 2022

मन कहाँ को चल चला तू 

गीत-नवगीत | मानोशी चैटर्जी

मन कहाँ को चल चला तू, 
 
छोड़ आया बाग़ सारे
आसमाँ भर के सितारे
चाँद हाथों से फिसल कर 
गिर गया सागर किनारे 
ढूँढ़ता क्या अब भला तू 
मन कहाँ को चल चला तू 
 
बहुत देखे प्रेम-बंधन, 
मोह मेंं फँस झुलसता तन, 
दौड़ता मन दिग्भ्रमित सा 
और फिर ढल गया यौवन। 
अब गिने क्यों कब जला तू, 
मन कहाँ को चल चला तू॥
 
रात हो जब बहुत काली
फूटती तब भोर-लाली 
आस जब मुरझा रही हो, 
 विहँस आती बौर डाली 
हारता क्यों हौसला तू, 
मन कहाँ को चल चला तू॥

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