विशेषांक: कैनेडा का हिंदी साहित्य

05 Feb, 2022

इन्द्रधनुषी लहर 

कविता | डॉ. रेणुका शर्मा

सुदूर देश की पुरवाई से 
आख़िर आ ही जाती है, 
मन की धानी परतों की इन्द्रधनुषी लहर . . . 
 
होली, दिवाली के रंगों और 
दीयों में बिखरती–झिलमिलाती 
सुनहरी खनक सबको सुनाने। 
अपनी मिट्टी की महक की ख़बर। 
त्योहारों के पावन अवसर पर, 
मन के कोनों को बुहार, 
नए रंगों की सरगम फैलाने, 
सुदूर देश की पुरवाई से 
आख़िर आ ही जाती है, 
मन की धानी परतों की इन्द्रधनुषी लहर। 
 
सुरमई रंग और चिर-परिचित 
ख़ुश्बू की याद दिलाने, 
सुदूर देश की पुरवाई से 
आख़िर आ ही जाती है, 
मन की धानी परतों की इन्द्रधनुषी लहर . . .। 

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