अनुजावत श्रीमती आशा बहिन जी! सस्नेह नमस्ते,
आप का प्रथम काव्य-संकलन “कही-अनकही“ प्राप्त हुआ। पढ़कर प्रसन्नता का पारावार लहरा उठा। इस शुभ अवसर पर हम दोनों (आदेश दंपति) की बधाई स्वीकार कीजिए। कविता लिखना आपका पैतृक गुण भी है। आपकी गणना टोरोंटो की प्रतिनिधि काव्य सर्जकों में की जाती है। अतएव आपके काव्य संकलन की आवश्यकता थी। आपकी काव्य-साधना के पीछे आपके पतिदेव का भी प्रचुर सहयोग है। तदर्थ वे भी सराहना के पात्र हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि आप दोनों स्वस्थ एवं दीर्घायु हों तथा इसी प्रकार हिंदी की सेवा कार्य में संलग्न रहें। टोरोंटो में हिंदी सर्जक समाज में व्याप्त संकीर्णताओं का निराकरण करना हम सबका कर्तव्य है। कवि की दृष्टि में न कोई छोटा होता है न कोई बड़ा। कवि सबका मित्र होता है, हितेच्छु होता है। वह जन-मंगल में ही सवमंगल का अनुभव करता है। आप सबमें मैंने इस प्रकार की सद्भावना की व्याप्ति की अनुभूति की है। अतः भावावेश में आपसे कह गया। जहाँ तक मेरा अपना प्रश्न है मैं जीवन भर लिखते रहने के उपरांत भी वह कुछ नहीं कह पाया हूँ, जो कहना चाहता हूँ। मेरी पूजा लगभग समाप्त होने पर आ गई है, अब आसन उठाना शेष है। मेरा एक पद है:
अब व्यर्थ में ही निज समय को मत गँवाइए।
पूजा समाप्त हो चुकी, आसन उठाइए।
आपसे यही कहना है कि निरंतर लिखती रहिए। आप सृजन के क्षेत्र में सफलता के क्षितिज छुयें, यही हमारी शुभकामना है। साहित्य-परिसर के सभी कवियों को मेरा नमन प्रदान कीजिए।
शुभेच्छु, आदेश दंपति
आशा बर्मन की प्रथम पुस्तक “कही-अनकही“ के संदर्भ में
1.
प्रियानुजा हे आशा बर्मन।
सदा सौख्ययुत होवे क्षण-क्षण॥
“कही अनकही” नामक सुंदर,
प्राप्त हुआ है काव्य संकलन।
हर कविता मोहक प्रसून है,
पुस्तक मानो कविता-कानन।
व्यक्त हुआ है सहज भाव से,
कवयित्री का शुचि अंतर्मन॥
2.
भाषा सुंदर सुलभ सुहानी,
कहता है हर शब्द कहानी।
पत्नी, माता, मित्र, सेविका,
व्यक्त हुई है कहीं पे नानी।
नारी के सब रूप हैं इसमें,
कहीं प्रफुल्लित कहीं पे उन्मन॥
3.
है संदेश भरा जीवन का,
इसकी हर कविता है सुंदर।
गीत, अगीत, मुक्त कविता है,
विविध रसों के बहते निर्झर।
भले सुन चुका हूँ मैं इनको,
झाँक रहा सर्वत्र नयापन॥
4.
मेरी बात मान कर, मेरी
इच्छा को फलवती बनाया।
कविताओं को एकत्रित कर,
लाकर है एक ठाँव बिठाया।
शुभकामना समेत बधाई,
शुभ हो तुमको प्रथम प्रकाशन॥
5.
जो हो गई प्रकाशित जग में,
कविता कभी नहीं मरती है।
कवियों के तन मर-मर जाते,
कविता किन्तु अमर रहती है।
लिखती रहो सुष्ठु कविताएँ,
जब तक है जीवन में जीवन॥
ओकोई 19. 1. 2012