विशेषांक: कैनेडा का हिंदी साहित्य

05 Feb, 2022

साँवरी घटाएँ पहन कर जब भी आते हैं गिरधर

कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’

साँवरी घटाएँ पहन कर जब भी आते हैं गिरधर
तो श्याम बन जाते हैं  
बाँसुरी अधरों का स्पर्श पाने को व्याकुल है 
वो ख़ुद से ही कहती है 
जाने अब साँवरी घटाओं में क्या ढूँढ़ रहे हैं 
राधिका के आने तक मुझे क्यों नहीं सुन लेते 
काफ़ी गीत याद किये हैं मैंने उनके लिए 
एक मैं ही हूँ जो सदा साथ रहती हूँ  
तब ही कुछ कहती हूँ 
जब वो सुनना चाहते हैं 
पवन तुम ही किंचित बहो ना  
तुम्हारे स्पर्श से ही वो मुझे हाथों में ले लेंगे 
ये क्या साँवरी घटाओं से सूर्य भी दर्शन देने लगे 
वो भी दर्शन के प्यासे हैं 
ओह कितना सुन्दर दृश्य है 
 
स्वर्ण जैसी किरणों ने श्याम को छुआ 
और देखते ही देखते  
श्याम साँवरे “सलोने” हो गए 
ये मनमोहक दृश्य सिर्फ़ मेरे लिए 
सिर्फ़ मेरे लिए . . .  

साँवरी घटाएँ पहन कर जब भी आते हैं गिरधर
तो श्याम बन जाते हैं  
बाँसुरी अधरों का स्पर्श पाने को व्याकुल है 
वो ख़ुद से ही कहती है 
जाने अब साँवरी घटाओं में क्या ढूँढ़ रहे हैं 
राधिका के आने तक मुझे क्यों नहीं सुन लेते 
काफ़ी गीत याद किये हैं मैंने उनके लिए 
एक मैं ही हूँ जो सदा साथ रहती हूँ  
तब ही कुछ कहती हूँ 
जब वो सुनना चाहते हैं 
पवन तुम ही किंचित बहो ना  
तुम्हारे स्पर्श से ही वो मुझे हाथों में ले लेंगे 
ये क्या साँवरी घटाओं से सूर्य भी दर्शन देने लगे 
वो भी दर्शन के प्यासे हैं 
ओह कितना सुन्दर दृश्य है 
 
स्वर्ण जैसी किरणों ने श्याम को छुआ 
और देखते ही देखते  
श्याम साँवरे “सलोने” हो गए 
ये मनमोहक दृश्य सिर्फ़ मेरे लिए 
सिर्फ़ मेरे लिए . . .  

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