कभी तो वो हमदम हमारे बनेंगे
कभी तो छटेंगे ये बादल ग़मों के
कभी तो ये मौसम सुहाने बनेंगे
कभी तो लबों पे नये गीत होंगे
कभी तो वो हमदम हमारे बनेंगे,
भले हम चले हैं अभी तक अकेले
रहे हम सदा चाहे गिरते सँभलते
ये आगे न होगा लगे मुझको ऐसा
नये फिर हमारे फ़साने बनेंगे,
ये दुनिया किसे जीने देती यहाँ पे
जहाँ देखो शिकवे गिले हैं ज़ुबाँ पे
मिलन के जो क़िस्से रहे हैं अधूरे
दोबारा वो मिलकर तराने बनेंगे,
ये पैग़ाम देती रहेंगी हवायें
मुहब्बत की आती रहेंगी सदायें
सीमायें जो बांधी वो टूटेंगी इक दिन
बनेंगे तो आख़िर, हमारे बनेंगे
कभी तो वो हमदम हमारे बनेंगे॥