यह प्रश्नचिन्ह क्यों बार-बार?
क्यों उसे जीत, क्यों मुझे हार?
यह प्रश्न उठे क्यों बार-बार?
जीवन में जो भी किये कर्म,
तत्समय लगा था, वही धर्म।
यदि अनजाने ही हुई भूल,
लगता जीवन से गया सार॥
यह प्रश्न उठे क्यों बार-बार?
इच्छाओं का तो नहीं अन्त,
मन छू लेता है दिग-दिगन्त।
इस मन को ही यदि कर लूँ जय,
हो जाये कष्टों से निस्तार॥
यह प्रश्न उठे क्यों बार-बार?
क्यों मुझको बनना है विशिष्ट?
क्यों नहीं काम्य है सहज शिष्ट?
सब सौंप उसे यह कठिन भार,
निश्चिन्त रहूँ, पा सुख अपार।
यह प्रश्न उठे क्यों बार-बार?
क्यों उसे जीत, क्यों मुझे हार?
यह प्रश्न उठे क्यों बार-बार?