विशेषांक: कैनेडा का हिंदी साहित्य

05 Feb, 2022

नहीं है, तो न सही
फ़ुर्सत किसी को, 
चलो आज ख़ुद से, 
मुलाक़ात कर लें . . .
 
वो मासूम बचपन, 
लड़कपन की शोख़ी, 
चलो आज ताज़ा, 
वो दिन रात कर लें . . .
 
वो बिन डोर उड़ती, 
पतंगों सी ख़्वाहिशें, 
बेझिझक, ज़िन्दगी से, 
होती फ़रमाइशें . . .
 
चलो ढूँढ़े उनको
कभी थे जो अपने, 
पिरो लाएँ, मोती-से, 
कुछ बिखरे सपने . . .
 
यूँ तो, बुझ चुकी है, 
आग हसरतों की, 
कुछ चिंगारियाँ, पर 
हैं अब भी दहकती . . .
 
दबे, ढके अंगारों की
क़िस्मत सजा दें, 
नाउम्मीद चाहतों को 
फिर से पनाह दे! 
 
न गिला, न शिकवा, 
सब कुछ भुला दें, 
दिल के, ख़ुश्क 
आँगन में, 
बेशर्त, बेशुमार, 
नेह बरसा दें . . .!! 
 
चलो 
आज, ख़ुद से, 
मुलाक़ात कर लें . . .! 

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