नहीं है, तो न सही
फ़ुर्सत किसी को,
चलो आज ख़ुद से,
मुलाक़ात कर लें . . .
वो मासूम बचपन,
लड़कपन की शोख़ी,
चलो आज ताज़ा,
वो दिन रात कर लें . . .
वो बिन डोर उड़ती,
पतंगों सी ख़्वाहिशें,
बेझिझक, ज़िन्दगी से,
होती फ़रमाइशें . . .
चलो ढूँढ़े उनको
कभी थे जो अपने,
पिरो लाएँ, मोती-से,
कुछ बिखरे सपने . . .
यूँ तो, बुझ चुकी है,
आग हसरतों की,
कुछ चिंगारियाँ, पर
हैं अब भी दहकती . . .
दबे, ढके अंगारों की
क़िस्मत सजा दें,
नाउम्मीद चाहतों को
फिर से पनाह दे!
न गिला, न शिकवा,
सब कुछ भुला दें,
दिल के, ख़ुश्क
आँगन में,
बेशर्त, बेशुमार,
नेह बरसा दें . . .!!
चलो
आज, ख़ुद से,
मुलाक़ात कर लें . . .!