मैं हवा हूँ बड़ी दूर की,
महकती, चहकती सुन्दर बयार।
आप जानते हैं मुझे,
आस पास ही रहती हूँ आपके,
कभी सोते से जगा देती हूँ,
स्वप्न में भी बहुधा आ जाती हूँ।
वह प्यार दुलार जो
आपके साथ सदा रहता है,
मैं ही तो ले आती हूँ
और सुगन्धित कर देती हूँ आपके चारों ओर।
वह जल की कल-कल,
स्वस्ति गान मन्दिरों के,
सुनते रहते हैं हम सब जिन्हें
झटपट अपने पंखों पर पसार लाती हूँ मैं!
संगीत की वह स्वर लहरी,
रास लीला की मधुर गूँज
जिसे सुनकर आप विभोर हुए थे कभी,
मैं ही चुरा लाई थी, नंद गाँव बरसाने से।
वह गुदगुदाती लपकती लहरें
जिनसे सराबोर हो जाते हैं मन प्राण,
और कोई नहीं मैं ही ले आती हूँ आपके पास,
और हाँ तिरंगे के रंग तो मेरे पास ही रहते हैं,
जो मैं हरे खेतों में देखती हूँ,
केसर हल्दी से रंग देती हूँ,
उड़ा देती हूँ नीले आकाश में,
और सब कुछ फैला देती हूँ—
मानस पटल पर श्वेत स्वच्छ, पवित्र।
पहचाना आपने?
देखिये आसपास!
मैं सुगन्ध हूँ भारत देश की, हमारे देश की!