विश्व के अनेक देशों में हिंदी में सृजनात्मक लेखन की समृद्ध परंपरा विद्यमान है। कुछ समय पूर्व तक मॉरीशस, फीजी, सूरीनाम, अमेरिका, ब्रिटेन आदि देशों में रचे जा रहे हिंदी साहित्य से भारतीय पाठक परिचित थे परंतु संचार साधनों की सुगमता के कारण आज अन्यान्य देशों में रचे जा रहे हिंदी साहित्य के प्रति हिंदी-जगत परिचित होता जा रहा है।
कैनेडा में हिंदी लेखन की समृद्ध परंपरा विद्यमान है, साहित्य की सभी विधाओं में साहित्य-सृजन हो रहा है। कविता, कहानी, उपन्यास, व्यंग्य, डायरी, संस्मरण, निबंध आदि में कैनेडा से हिंदी साहित्य रचा जा रहा है और हिंदी जगत में उनका स्वागत भी हो रहा है। कैनेडा में हिंदी के सृजनात्मक लेखन में अनेक हिंदी प्रेमी सक्रियता से कार्य कर रहे हैं, इनमें—डॉ. भारतेंदु श्रीवास्तव, डॉ. शिवनंदन यादव, प्रो. हरिशंकर आदेश, डॉ. स्नेह ठाकुर, अरुणा भटनागर, डॉ. बृजकिशोर कश्यप, विजय विक्रांत, आशा बर्मन, अचला दीप्तिकुमार, डॉ. ओंकार प्रसाद द्विवेदी, भुवनेश्वरी पांडे, सुरेन्द्र पाठक, आशा बर्मन, भगवतशरण श्रीवास्तव, प्रमिला भार्गव, शैल शर्मा, कृष्णा वर्मा, मानोशी चटर्जी, जसबीर कालरवी, पंकज शर्मा, अनिल पुरोहित, आचार्य संदीप कुमार, रीनू पुरोहित, श्रीनाथ द्विवेदी, शैलजा सक्सेना, गोपाल बघेल, डॉ. हंसा दीप, धर्मपाल महेंद जैन, श्याम त्रिपाठी, डॉ. रत्नाकर नराले आदि अनेक नाम हैं जो हिंदी साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं। यह सुकून देने वाली बात है कि भारत से इतनी दूर का हिंदी साहित्य लेखन साहित्य को वैश्विक धरातल का भाव-बोध देता है। आवश्यकता इस बात की है कि भारत से बाहर लिखे जा रहे हिंदी साहित्य को साहित्य की मुख्यधारा में शामिल किया जाए।
इस लेख में कैनेडा के कुछ साहित्यकारों पर संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत कर रहा हूँ और प्रयास रहेगा कि भविष्य में सभी साहित्यकारों पर सामग्री एकत्रित कर विस्तृत आलेख तैयार कर सकूँ। यहाँ सुविधा के लिए उन साहित्यकारों का विवेचन कर रहा हूँ जिनके बारे में मुझे जानकारी उपलब्ध हो सकी या उनके साहित्य को पढ़ने का अवसर मुझे मिला है:
सुमन घई—
कैनेडा में हिंदी को समर्पित व्यक्तित्वों में सुमन घई का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। आपने हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण कार्य किए हैं और आज भी अग्रणी भूमिका में हैं। आपने जहाँ साहित्य की अन्य विधाओं में लेखन किया वहीं हिंदी साहित्यिक पत्रकारिता के आधार स्तंभ के रूप में सक्रिय हैं। आप साहित्यकुंज (sahityakunj.net) के संस्थापक संपादक, हिन्दी राइटर्स गिल्ड के संस्थापक निदेशक, हिन्दी चेतना त्रैमासिक अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक पत्रिका के पूर्व सह संपादक, हिंदी साहित्य सभा कैनेडा के पूर्व महासचिव के उत्तरदायित्वों का निर्वहन कर नए हिंदी प्रेमियों और सृजनकारों को प्रोत्साहित कर उनका मार्गदर्शन भी कर रहे हैं। आपकी रचनाएँ साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं एवं संग्रहों में प्रकाशित हुई हैं। 'लाश व अन्य कहानियाँ' ई–पुस्तक के रूप में उपलब्ध है। साहित्यकुंज पोर्टल पर सुमन जी की अनेक विधाओं जैसे कहानी, कविता, समीक्षा, आलेख आदि रचनाएँ उपलब्ध हैं। यहाँ पर उनकी एक कविता 'त्रिशंकु' प्रस्तुत है:
“भूत भूलता नहीं है
वर्तमान पहचानता नहीं है
भविष्य जानता नहीं है
इस त्रिशंकु में रहूँगा तो कब तक?
एक पाँव वहाँ की
स्मृतियों में अटका है
दूसरा यहाँ की वास्तविकता में
दो नावों में धरे हैं पाँव
निश्चित है डूबना
तो फिर
जल में पदचिह्न छोड़ोगे तो कैसे . . .?”
श्याम त्रिपाठी—
उत्तरी अमेरिका में हिंदी भाषा और साहित्य, भारतीय संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन के में श्याम त्रिपाठी का उल्लेखनीय योगदान है, और अपने उद्देश्यों को गति देने के लिए कैनेडा में नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की। आप कवितायें, डायरी, लेख साहित्य रचते हैं। वास्तव में त्रिपाठी जी निःस्वार्थ और दृढ़ संकल्पी हिंदी सेवी हैं जो आज भी सप्ताहांत में अनेक संस्थाओं/धार्मिक स्थलों में हिंदी पढ़ाने का काम कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपकी आत्मकथा “सूखे आँसू” हिंदी साहित्य संसार को मिली है। इस आत्मकथा में त्रिपाठी जी ने अपने जीवन के संघर्षों की बहुत ही सपाट बयानी की है, इस पुस्तक को पाठक एक चरित्र के जीवन के विभिन्न पड़ावों की उठा-पटक को पढ़ते हुए उपन्यास पढ़ने की सी अनुभूति पा सकता है। कैनेडा के ही हिंदी लेखक धर्मपाल जैन का मानना है कि “इस आत्मकथा में ख़ुद को महान साबित करने की कोई क़िस्सागोई नहीं है, बस ज़मीन से जुड़े एक कार्यकर्ता का अपना विवेकपूर्ण और विनम्र बयान है।” श्याम त्रिपाठी जी सहज और सरल हृदय के स्वामी हैं और कैनेडा से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘हिंदी चेतना’ के संपादक हैं।
प्रो. रत्नाकर नराले—
रत्नाकर नराले कैनेडा में रह रहे हैं और पिछले 50 वर्षों से हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार, अध्ययन-अध्यापन में समर्पित भाव से कार्य कर रहे हैं। रत्नाकर नराले ने सरस्वती और रत्नाकर नामक देवनागरी फोंट्स विकसित किए हैं। इसके साथ ही व्यक्तिगत और संस्थाओं के निजी उपयोग के लिए भी देवनागरी फोंट्स विकसित किए। प्रो. नराले ने आईआईटी खड़गपुर से अध्ययन किया और कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय, नागपुर, भारत से पीएच.डी. उपाधि प्राप्त की है। उन्हें हिंदी और संस्कृत कविता और संगीत का शौक़ है। नराले जी अँग्रेज़ी बोलने वाले लोगों को हिंदी, संस्कृत और गीता पढ़ाने के लिए समर्पित हैं। वे हिंदी, मराठी, बंगाली, पंजाबी, उर्दू, तमिल और संस्कृत भाषाएँ जानते हैं और उन्होंने इन भाषाओं को सीखने के लिए किताबें लिखी हैं जिनकी सहायता से भाषा संबधी जटिलताओं को आसानी से समझा जा सकता है।
उनके प्रकाशनों में इस तरह के हिंदी और संस्कृत शीर्षक शामिल हैं, जैसे: नेगी संगीत रोशनी, संगीत कृष्ण-रामायण, बालकृष्ण दोहावली, नंदकिशोर दोहावली, गीता दोहावली, रामायण दोहावली, गीता का शब्दकोष, पतंजलि के योग सूत्र, अँग्रेज़ी माध्यम से हिंदी सीखें (हिंदी लर्नर), अँग्रेज़ी माध्यम से संस्कृत सीखें, जानें अँग्रेज़ी-हिंदी के माध्यम से तमिल, अँग्रेज़ी-हिंदी के माध्यम से पंजाबी सीखें, अँग्रेज़ी-हिंदी के माध्यम से गुज़राती सीखें, अँग्रेज़ी-हिंदी के माध्यम से बंगाली सीखें, अँग्रेज़ी-हिंदी के माध्यम से मराठी सीखें, अँग्रेज़ी-हिंदी के माध्यम से उर्दू सीखें, अँग्रेज़ी-हिंदी के माध्यम से भारतीय संगीत सीखें आदि।
उन्होंने यॉर्क विश्वविद्यालय, टोरोंटो विश्वविद्यालय और रायर्सन विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाई है। नराले जी टोरोंटो ज़िला स्कूल बोर्ड और कैनेडा की विश्व साक्षरता में हिंदी भी पढ़ाते हैं, हिंदू शिक्षण संस्थान में संस्कृत और गीता पढ़ाते हैं। वे हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा के सदस्य और हिंदी चेतना के सलाहकार हैं जो हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित संगठन हैं।
नराले जी पुस्तक भारती संस्था के अध्यक्ष हैं और ई-पत्रिकाओं–त्रैमासिक ‘पुस्तक भारती रिसर्च जनरल’ और द्विमासिक ‘भारत सौरभ’ के संपादक हैं।
डॉ. स्नेह ठाकुर—
आप जानते हैं कि लोग अपने देश में रहकर भी विदेशी-सा दिखने को प्रयासरत है तो एक वह वर्ग भी है जो विदेश में रहकर भी भारतीयता से सराबोर हैं और अपनी भाषा-संस्कृति के ध्वजाधारी बनकर भारतीयता का मान बढ़ा रहे। विदेशों में ऐसे ही लोगों में एक नाम है—स्नेह ठाकुर जो न केवल भारतीय भाषा संस्कृति से भावनात्मक रूप से बल्कि रचनात्मक रूप से भी जुड़ी हैं। चित्रकूट में जन्मीं और पिछले 50 सालों से कैनेडा में बसी स्नेह ठाकुर ने भारत की भाषा हिंदी के प्रसार अभियान को आगे बढ़ाने की दृष्टि से 2003 में ‘सद्भावना हिंदी साहित्यिक संस्था’ की स्थापना की। ‘सद्भावना हिंदी साहित्यिक संस्था’ के माध्यम से साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन द्वारा वे अनवरत हिंदी के प्रचार-प्रसार व उन्नयन के कार्य में लगी हैं। स्नेह ठाकुर की लेखन, पठन, नाट्य-मंचन, चित्रपट, चित्रकला एवं भ्रमण। नाट्य लेखन-मंचन, चलचित्र अभिनय आदि शिक्षा व कला के विभिन्न क्षेत्रों में अभिरुचि के चलते वे इन सभी के माध्यम से हिंदी के प्रसार में लगी हैं। स्नेह ठाकुर नाटक, काव्य, कहानी, निबंध, गीत, भजन, ग़ज़ल, रिपोर्ताज, उपन्यास, शोध-ग्रंथ आदि में महत्त्वपूर्ण योगदान है। वे साहित्य की अनेक विधाओं में हिंदी के साथ-साथ अँग्रेजी में भी लिखती हैं। डॉ. स्नेह जी की प्रकाशित पुस्तकें हैं:
उपन्यास: दशानन रावण, लोक नायक राम, कैकेयी:चेतना-शिखा, श्री रामप्रिया सीता,
कहानी संग्रह: अनोखा साथी, आज का पुरुष
काव्य संग्रह: जीवन के रंग, दर्दे-जुबाँ (उर्दू कविताओं का संग्रह), जीवन निधि, आत्म गुंजन (दार्शनिक और भक्ति की कविताओं का संग्रह)। हास-परिहास (हास्य कविताओं का संग्रह), जज़्बातों का सिलसिला, अनुभूतियाँ, काव्याञ्जलि
संपादित संकलन: काव्य-धारा, काव्य हीरक, बौछार, काव्य-वृष्टि
नाटक: अनमोल हास्य क्षण
पूरब-पश्चिम (आप्रवासी सम्बंधित आलेख संग्रह),
संजीवनी (स्वास्थ्य सम्बन्धी निबंध संग्रह),
उपनिषद् दर्शन (ईशोपनिषद्, दार्शनिक और आध्यात्मिक)
आपके उपन्यास पौराणिक चरित्रों को आधार बनाकर गहन अध्ययन के परिणाम हैं। इसके साथ ही सभी रचनाएँ दार्शनिक और आध्यात्मिकता के भारतीय संस्कृति के उदात्त तत्वों पर आधारित हैं और पाठक को नई सोच देते हैं।
स्नेह ठाकुर के हिंदी के प्रसार का एक महत्त्वपूर्ण ज़रिया है हिंदी साहित्यिक पत्रिका ‘वसुधा’। इसके माध्यम से वे भारत व विश्व के साहित्यकारों एवं पाठकों को परस्पर जोड़ने और एक मंच पर लाने के कार्य में लगी हैं। स्नेह ठाकुर के संपादन में प्रकाशित “वसुधा” विभिन्न विषयों पर आधारित लेख, कहानी, कविता, ग़ज़ल, संस्मरण आदि साहित्य की अनेक विधाओं से परिपूर्ण हिंदी साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका है जो जनवरी 2004 से कैनेडा से अनवरत प्रकाशित हो रही है।
विजय विक्रांत—
विजय जी कैनेडा में 56 वर्षों से रह रहे हैं और हिंदी प्रचार-प्रसार में लगे हैं। कविता, कहानी, डायरी, आलेख, नाटक, सामाजिक विषयों के लेखन में रुचि रखते हैं। आपकी अनेक रचनाएँ हिंदी की साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। कैनेडा की हिंदी साहित्य सभा, हिंदी राइटर्स गिल्ड के सह संस्थापक हैं और साहित्यिक गतिविधियों के माध्यम से हिंदी की सेवा कर रहे हैं। हाल ही में आपकी कहानी ‘मेरा नाम कोरोना है’-‘गर्भनाल’ पत्रिका में पढ़ने को मिली जिसमें लिखते हैं–“कोरोना को समझने और जानने के लिए दुनिया के बड़े-बड़े कैमिस्ट लगे हुए हैं। ‘बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा’ कहावत मेरे पर पूरी तरह से खरी उतरती है क्योंकि एक से नहीं हज़ारों लोगों से मैंने अपने बारे में सुना है वहाँ सब बस यही कहते हैं कि मैं एक ख़तरनाक क़िस्म का वायरस हूँ। एक इसी पैनडैमिक वायरस जिसका अभी तक कोई तोड़ नहीं है। ज़रा सोचो अगर आपको भी दिन-रात इसी ही बात सुनने को मिले तो कैसा लगेगा।” डायरी के रूप में ईरान के दौरान की दो रोचक रचनाएँ पढ़ने को मिली–पैर का चक्कर और तेहरान में बसने की तैयारी।
शैलजा सक्सेना—
टोरोंटो में रहते हुए शैलजा जी हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति समर्पित हैं और साहित्यिक सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से व्यस्त हैं। अनेक कहानियाँ, लघुकथाएँ और कवितायें अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही हैं। आपने ‘हिंदी राइटर्स गिल्ड, टोरोंटो’ की स्थापना में सक्रिय भूमिका निभाई और निरंतर हिंदी से जुड़े साहित्यिक आयोजनों के माध्यम से समाज को हिंदी के प्रति प्रोत्साहित करती रहती हैं। शैलजा सक्सेना ने हिंदी के अनेक नाटकों जैसे—‘अंधायुग’, ”रश्मिरथी’, “मित्रो मराजानी’, “सूरदास’, ”संत जनाबाई’ आदि का निर्देशन और मंचन कराकर स्थानीय लोगों में हिंदी साहित्य के प्रति रुचि जागृत की है और युवाओं को प्रोत्साहित किया है। आपका काव्य संग्रह—‘क्या तुमको भी ऐसा लगा’ प्रकाशित हुआ है। शैलजा जी की कविता और कहानियाँ समसामयिक होने के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता और नैतिक उत्तरदायित्व बोध उत्पन्न करती हैं। कविताओं की पंक्तियों के गंभीर भाव-बोध को देखिए:
- 1-
“तुम्हारा मौन मेरी मुखरता से कहता है
जीवन का सत्य प्राय: मौन में ही छुपा रहता है,
अब मेरी मुखरता शान्त है, मौन है
क्योंकि तुम्हारा मौन अब मेरे मौन के साथ रहता है॥”
-2-
“विश्व पुस्तक दिवस!
किताबें घर हैं मेरा,
बचपन से रहती हूँ मैं उनमें,
मेरे नाम की जाने कितनी कहानियाँ लिखी हैं लोगों ने,
पढ़ कर उन्हें, कभी हँसती हूँ, कभी रोती हूँ।
किताबें घर हैं मेरा॥”
डॉ. हंसा दीप—
हंसा दीप जी कैनेडा के यूनिवर्सिटी ऑफ़ टोरोंटो में हिंदी अध्यापन से जुड़ी हैं। आज हिंदी जगत में हंसा दीप जी का सृजनात्मक हिंदी लेखन विशेष रूप से पहचान बना रहा है। हंसा दीप की अनेक कहानियाँ, डायरी और संस्मरण हिंदी की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित हो रही हैं। आपकी कहानी पाठक बहुत पसंद कर रहे हैं तभी तो इनकी कहानियों का पंजाबी, गुज़राती, मराठी भाषों में अनुवाद हुआ है। हंसा दीप के तीन कहानी संग्रह–चश्मे अपने-अपने, प्रवास में आसपास, शत प्रतिशत तथा उपन्यास–केसरिया बालम, कुबेर और बंद मुट्ठी प्रकाशित हो चुके हैं। और नया उपन्यास ‘केसरिया बालम’ प्रकाशन के क्रम में आ चुका है और मातृभूमि नामक पत्रिका में धारावाहिक रूप में छपने लगा है। हंसा दीप जी ने अँग्रेज़ी फ़िल्मों के अनुवाद भी किए हैं।
अपनी कहानियों में हंसा दीप जी ने भारतीय परिवेश और प्रवासी जीवन का ताना-बाना बहुत ही बारीक़ी से बुना है। लेखिका जहाँ भारतीयता से जुड़ी है तो जहाँ वे निवास कर रही हैं वहाँ का परिवेश, वातावरण, दैनिक-चर्या को कथा से जोड़ा है और बहुत ही संयमित रचनाएँ पाठकों को दी हैं जो आज हिंदी में चर्चित भी हो रही हैं। आपकी कहानियों में सामाजिक सरोकारों का दायरा काफ़ी विस्तृत है उनके पात्र रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से जुड़े हैं तभी कहानी में रोचकता और पठनीयता का समावेश हो जाता है। हंसा जी का कथा सृजन के बारे में मानना है कि “कथा संघर्ष से शुरू होती है, विसंगतियों का पर्दाफ़ाश करती है और सकारात्मकता के साथ अंत होती है।” हाल ही में प्रकाशित ‘शत-प्रतिशत’ संग्रह शीर्षक कहानी बाल शोषण के संवेदनात्मक पक्ष को पाठकों के सामने रखती है। जिसका मुख्य पात्र साशा के मानसिक अंतर्द्वंद्व का सूक्ष्म विश्लेषण कर लेखिका ने पिता की क्रूरताओं से उपजी अपराधी मानसिकता को फौस्टर माता-पिता कीथ व जोऐना के प्रेम ने और फिर लीसा की निकटता से साशा के हृदय परिवर्तन को दिखा कर समाज को सीख देकर रचनात्मक अंत किया है।
‘बंद मुट्ठी’ उपन्यास बहुत ही रोचक कथा के साथ सामने आता है इसमें लेखिका ने मातृत्व के द्वन्द्व, परिवार की पूर्णता को सभी पक्षों के साथ बहुत ही सहज अंदाज़ में प्रस्तुत किया है। कथा का प्रवाह इतना सहज है कि पाठक उस प्रवाह से बाहर नहीं निकल पाता। भाषा और भाव का सम्मिश्रण कथा की रोचकता को बढ़ते हैं। मैंने भी एक बैठक में उपन्यास पढ़ लिया था। ‘कुबेर’ उपन्यास में हंसा दीप जी ने कथा में मानवीय रिश्तों के भावनात्मक पहलुओं के साथ व्यवसायिक पक्षों को भी प्रभावी तरीक़े से अभिव्यक्त किया है। धनु का जीवन संघर्ष घर से भागना, ढाबे पर काम करना, जीवन-ज्योत ऐन जी ओ जाना, धनु से डी.पी. बनना, मैरी बहन का मिलना, नैन्सी से प्रेम और बिछोह, डी.पी, सर उर्फ़ कुबेर बनाने में जो कथात्मकता का संयोजन किया है वह अद्भुत है और चमत्कृत करता है कहीं भी बनावटीपन नहीं है कथा जिस रफ़्तार से शुरू होती है उसी रफ़्तार से चली जाती है। ग़रीब और बेसहारा बच्चों के प्रति सहानुभूति उनके कार्यक्षेत्र और दक्षता को उनके गंतव्य तक पहुँचाता है।
धर्मपाल महेंद जैन—
धर्मपाल जैन जी कैनेडा के टोरोंटो में रहते हुए हिंदी की व्यंग्य विधा को समृद्ध कर रहे हैं। आपकी व्यंग्य रचनाएँ हिंदी जगत की लगभग सभी पत्र पत्रिकाओं में पढ़ सकते हैं, यदि लेखक रचना के अंत में स्थान का ज़िक्र न करे तो कल्पना भी नहीं की जा सकती कि लेखक भारत से बाहर के परिवेश में रह रहा है। आपकी रचनाएँ भारत के वर्तमान परिवेश और परिस्थियों की नीर-क्षीर परख प्रस्तुत कर जागरूक समाज को नई दिशा देने के प्रयास कर रहा हैं। धर्मपाल जी का व्यंग्य के सम्बन्ध में मानना है, “अराजकता, अत्याचार, अनाचार, असमानताएँ, असत्य, अवसरवादिता का विरोध प्रकट करने का प्रभावी माध्यम व्यंग्य है।” अब तक आपके दो व्यंग्य संग्रह–‘सर, क्यों दाँत फाड़ रहा है’, और ‘दिमाग वालों सावधान’ तथा कविता संग्रह ‘इस समय तक’ हिंदी साहित्य को मिले हैं। कविता संग्रह ‘इस समय तक’ में कुल 78 कविताएँ अनेक भावों, संवेदनाओं, प्रसंगों तथा परिवेश की कवितायें हैं जिनमें सतरंगी जीवन के भावबोध बहुरंगों में अभिव्यक्त हुए हैं। धर्मपाल जी जीवन के नैसर्गिक सौन्दर्य, प्राकृतिक परिवेश, प्रजातंत्र के स्वस्थ स्वरूप, मानवीय सम्बन्धों की गरिमा और मानवीयता की रक्षा में कविता लिखता है। मुझे दोनों व्यंग्य संग्रह पढ़ने का मौक़ा मिला है। व्यंग्य समाजोन्मुखी हैं तभी पाठक इसमें रोचकता को अनुभव करता है और धीरी मार गंभीरता उत्पन्न करती है। लेखक ने भारतीय समाज के सभी क्षेत्रों में व्याप्त विसंगतियों पर पैनी निगाह रखकर बाल को बाउंड्री के बाहर किया है, और समस्याओं के समाधान भी समाज को सुझाए हैं, जो लेखकीय धर्म विश्वबंधुत्व और सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना को सुदृढ़ करते हैं। हाल ही में ‘चाणक्यवार्ता’ में एक व्यंग्य ‘काश! साब आए होते’ प्रकाशित हुआ है जिसमें कार्यालयों की कार्यशैली पर करारा व्यंग्य है, देखें एक अंश:
“साहब नहीं आते हैं तो दफ़्तर की आबादी आधी हो जाती है। चिड़िया बिठाने वाले डिप्टी साहबान बासी फूल-से कुढ़ने लगते हैं, उनके पास तितलियाँ पान-पराग खाने नहीं आतीं। दफ़्तर के टीप लेखकों का अर्थशास्त्रीय भाषा में टिप मूल्य शून्य हो जाता है। साहब नहीं आये तो अख़बार भी नहीं आये, वे ही घर से ले कर आते हैं। साहब हिंदी के अख़बार घर पढ़ लेते हैं, ऑफ़िस में वे अँग्रेज़ी के अख़बार पढ़ते हैं। घर से मामला हिंदी में पढ़ कर आओ तो अंग्रेज़ी जल्दी से समझ में आ जाती है और कनिष्ठों पर झाड़ी जा सकती है।”
‘गंभीर समाचार’ के ताज़े अंक में ‘नामांकन लाइन खुली हैं’ व्यंग्य प्रकाशित हुआ है उसका एक अंश देखें:
“पिछले दिनों दो सुझाव आये, पहला सुझाव पूर्व राष्ट्रपति का था कि लोकसभा की सीटें बढ़ाकर एक हज़ार कर दी जायें। हम इस पर विचार कर रहे हैं, पर दूसरा सुझाव तत्काल प्रभाव से मान्य कर लिया गया है। यह सुझाव एक आम नागरिक से मिला था, उसका कहना था कि नए नोट तो आ गये पर नये सम्मान नहीं आये, करोड़पति इन नोटों का क्या करें, उन्हें नोटों के बदले सम्मान चाहिये। इसलिए राष्ट्रीय स्तर के नागरिक पुरस्कारों की नई शृंखला शुरू की जानी चाहिये। इस शृंखला का नाम हमारे सामूहिक चरित्र के नाम पर हो तो देश धन्य हो जाये। इन्हें छद्म श्री, छद्म भूषण, छद्म विभूषण और छद्म रत्न आदि नामों से संबोधित किया जाये।”
सरन घई—
सरन घई 1996 से ब्रैम्पटन कैनेडा में रह रहे हैं और हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व भाषा व संयुक्त राष्ट्र संघ के पटल पर स्थापित करने के उद्देश्य से हिंदी का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। सरन जी ने अपने उद्देश्यों के लिए ‘विश्व हिंदी संस्थान कल्चरल आर्गेनाईजेशन, कैनेडा’ की स्थापना की है। 2004-2010 तक यूनिवर्सिटी ऑफ़ टोरोंटो, कैनेडा में आध्यापन किया। इस संस्था का ध्येय वाक्य है—हिंदी का सूर्य कभी अस्त नहीं होता है। विश्व हिंदी संस्थान के कार्यकलाप के अंतर्गत समय-समय पर कवि सम्मलेन करवाने के साथ-साथ कैनेडा में प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय हिंदी साहित्यिक सम्मलेन का आयोजन करना, टोरोंटो में स्वतंत्रता दिवस पर इंडिया दे परेड के अंतर्गत साहित्य की झांकी ‘साहित्य रथ’ संचालन करना प्रमुख है जिसके कर्ता-धरता सरन जी हैं। सरन घई के संपादन, लेखन में–विश्व की सबसे लम्बी कविता ‘मुक्तिपथ-प्रेमपथ महाकाव्यगीत’, फ़िल्मी उपन्यास ‘राजद्रोही’, 34 कहानीकारों की संयुक्त कृति–‘सुनो, तुम मुझसे झूठ तो नहीं बोल रहे’, काव्य संग्रह ‘छुअन’ प्रकाशित हैं।
सरन घई का कवि हृदय बाढ़ की विभीषिका को देखते हुए शब्दश: सही उतर रही है। भारत के गाँवों में बाढ़ को चित्रित करती कविता–'वो पीपल का पेड़' की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं:
“दृष्य-जब वर्षा प्रारंभ हुई
आया सावन मेघा बरसे
रिमझिम-रिमझिम पानी,
भरे ताल-तालाब-पोखरें,
ख़ुश है बूढ़ी नानी।
अब के बरस ब्याह दूँ बिटिया,
पक्का करूँ मकान,
चला खेत में बीज डालने,
प्रमुदित-मुदित किसान।”
गोपाल बघेल ‘मधु’—
टोरोंटो, कैनेडा में 1997 से रहते हुए ग्लोबल फाइबर्स के अध्यक्ष हैं, हिंदी साहित्यिक गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से भारतीय साहित्य और संस्कृति का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। आप कविता और आध्यात्मिक प्रेरणाप्रद लेख लिखते हैं। आध्यात्मिक, योग, प्रबन्धन आदि विषयों पर अब तक हिन्दी, ब्रज, बँगला, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं में सात हज़ार से अधिक कविताओं एवं आलेखों का सृजन कर चुके हैं। आप अखिल विश्व हिंदी समिति तथा आध्यात्मिक प्रबन्ध पीठ के निदेशक व अध्यक्ष हैं। बघेल जी की एक कविता का उदाहरण प्रस्तुत है:
“वे ही बने हैं वर्ण पर्ण, वरण विभु किए;
धारण किए हैं धर्म, मर्म वे ही हर छुए!
हर रण में रथ उन्हीं का रहा, सारथी वे ही;
हर देही चक्र शोध किए, शाश्वत वही!
वे व्योम वायु ज्वाल जलधि भूतल भास्वर;
उर चेतना से चित्र चित्त, बनाए अधर!”
-2-
“जलाऊँगा दीप मैं हर आत्म में,
द्योति की हर झलक में औ ललक में;
श्रीति की हर नीति में उद्गीति में,
चन्द्र की हर कला के संगीत में!”
मानोशी चटर्जी—
मानोशी चटर्जी कैनेडा में शिक्षण कार्य में लगी हैं, भारतीय साहित्य और संगीत में उनकी गहरी रुचि है। भारतीय पर्यटन विभाग, टोरोंटो की ओर से कैनेडा में हिंदी सांस्कृतिक व शास्त्रीय संगीत उत्सवों की मनोनीत संचालिका हैं। ‘उन्मेष’ काव्य संकलन प्रकाशित, अनेक काव्य-संकलनों में रचनायें प्रकाशित, लंदन से ज़किया ज़ुबैरी और तेजेन्द्र शर्मा द्वारा संपादित “समुद्र पार हिंदी ग़ज़ल“ में मानोशी की ग़ज़लें संकलित हैं। मानोशी की कविता की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं:
“सबकी देखा-देखी में / मैं भी इतराया,
मिला नहीं कुछ मगर हृदय / क्षण को भरमाया,
आसमान को छू लेने के पागलपन में / अपनी मिट्टी का टुकड़ा
बेकार गँवाया,”
-2-
“कुछ मिले काँटे मगर उपवन मिला,
क्या यही कम है कि यह जीवन मिला।
X X X X
यदि न पायी प्रीति तो सब व्यर्थ है,
मीत का ही प्यार जीवन अर्थ है,
मोह-बंधन में पड़ा मन सोचता कब
बंधनों का मूल भी निज अर्थ है,
सुख कभी मिलता कहीं क्या अन्य से?
स्वर्ग तो अपने हृदय-आँगन मिला।”
समीर लाल समीर—
समीर लाल समीर का जन्म मध्यप्रदेश क रतलाम ज़िले में हुआ और शिक्षा-दीक्षा जबलपुर में हुई। उच्च शिक्षा अमेरिका से चार्टर्ड एकाउंटेंसी एवं मैनेजमेंट एकाउंटेंसी में की। कैनेडा के ओंटारियो में रहते हुए बैंकिंग सेक्टर में कार्य कर रहे हैं। हिंदी साहित्य सृजन में निरंतरता से रमे हैं और ‘उड़न तश्तरी’ नामक सोशल मीडिया / ब्लॉग में निरंतर लिख रहे हैं। भारत और भारत से बाहर आपकी लघुकथाएँ, कविता, व्यंग्य रचनाएँ प्रकाशित हो रही हैं। लघुकथा संग्रह–‘मोहे बेटवा न कीजो’; काव्य संग्रह–‘बिखरे मोती’; यात्रा-वृत्तांत–‘देख लूँ तो चलूँ’ बहुत ही रोचक और प्रशंसनीय कृतियाँ हैं। Udan Tashtari नामक फ़ेसबुक पेज पर आपकी अनेक व्यंग्य रचनाएँ उपलब्ध हैं। आपकी छोटी-छोटी दो कवितायें यहाँ प्रस्तुत हैं:
“यूँ थमा थमा सा वक़्त,
और वक़्त के उस पार॥
इन्तज़ार करती हुई वो॥
हज़ारों ज़िन्दा ख़्वाहिशें॥
चलो, यूँ ही साथ साथ॥
यह वक़्त भी गुज़र जायेगा।”
-2-
“पानी पर तुम पानी लिखना,
कविता कोई सुहानी लिखना,
उम्र की हर दहलीज़ पर तुम,
अपनी एक कहानी लिखना।”
इस प्रकार देखा जाए तो वर्तमान में कैनेडा में जहाँ भारतीयों की संख्या में वृद्धि हो रही है और वे अपने परिश्रम से अपनी पहचान बनाने में सफल हो रहे हैं वहीं भारतीय संस्कृति, भाषाओं के प्रचार-प्रसार का सकारात्मक वातावरण उपलब्ध हो रहा है। जहाँ हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में अनेक संगठन और व्यक्ति महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं वहीं हिंदी प्रेमी अपने रचनात्मक कार्यों से हिंदी की लोकप्रियता को बढ़ा रहे हैं। मुझे विश्वास है यह लेख भारत से बाहर हिंदी की स्थिति को जानने /समझने के इच्छुक व्यक्तियों को नई जानकारी उपलब्ध कराएगा और इस दिशा में गंभीर चिंतन के लिए उन्हें प्रेरित और प्रोत्साहित करेगा।
डॉ. दीपक पाण्डेय
सहायक निदेशक
केंद्रीय हिन्दी निदेशालय
शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
नई दिल्ली 110066
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