विशेषांक: कैनेडा का हिंदी साहित्य

05 Feb, 2022

अग्नि के सात फेरे 

कविता | तरुण वासुदेवा

अग्नि के सात फेरे 
साथ-साथ जीने मरने की क़समें 
और सात जन्मों का साथ 
माता पिता का आशीर्वाद 
दोस्तों और सगे सम्बंधियों का प्यार 
 
समय का चक्र चलता गया 
रस्में पूरी होती गयीं 
एक प्रश्न उठा था मेरे मन में 
जो पूछ न सका उस पल में 
ग़र मिलते वो पंडित तो पूछता ज़रूर 
कि क्यों कराते हैं सात जन्मों का साथ 
फिर ख़्याल आया 
दिमाग़ ने गणित लगाया 
कि निश्चित है अगले छह जन्मों का मिलना 
क्योंकि बंधन तो सात जन्मों का है 
 
अब जब अगले जन्म में आएँगे 
रस्में भी करवाएँगे 
जीने मरने की क़समें भी खाएँगे 
लेकिन पंडित जी से अग्नि के फेरे 
सात जन्मों वाले नहीं 
जन्मों जन्मों के साथ वाले ही पढ़वाएँगे 

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