विशेषांक: कैनेडा का हिंदी साहित्य

05 Feb, 2022

माँ हिन्दी 
तुम मात्र मेरी आवाज़ की 
अभिव्यक्ति नहीं हो 
तुम वो हो 
जिसे सुनने के बाद 
दुनिया मुझे पहचान जाती है 
मैं कौन हूँ 
कहाँ से हूँ 
ये जान जाती है 
 
जब मैंने काग़ज़ पर 
अपनी भावनाओं के रूप में 
लिखा तुम्हें 
तुमने बढ़ कर मुझे 
कवि की संज्ञा दे दी 
 
तुम्हारे ही साँचे में ढल कर 
दिनकर और निराला की रचना हुई 
साहित्य को साहित्य तुमने ही तो बनाया है 
तुम ही वो 
जो वीरों की दहाड़ बन कर 
सरहदों पर 
दुश्मनों को दहलाती है
 
तुम वो ही हो 
जो लोरी बन कर 
किसी बालक को 
मीठी नींद सुलाती है 
 
जब मन के भीतर 
कोई रचना बन कर 
टहलती हो तुम 
मेरे चेहरे का नूर 
कुछ और ही होता है 
 
हिमालय के गर्भ से जन्मी हुई नदी को 'गंगा' 
तुमने ही बनाया है
 
ब्रह्माण्ड स्वर ॐ 
जब तुम्हारी सूरत बन कर 
जिह्वा पर हो 
देवता भी 
तभी प्रसन्न होते हैं 
 
माँ के मन से निकली हुई 
दुआ हो तुम 
पिता का दिया 
हर आशीर्वाद हो तुम 
 
पुरातन दर्शन हो 
युग परिवर्तन हो 
 
सूर्य को समर्पित 
मुनि तपस्वी योगी की अंजुली से 
निकलती धारा 
तुम ही तो हो 
 
तुम्हें सादर प्रणाम 
माँ हिंदी 
 
माँ हिन्दी 
तुम मात्र मेरी आवाज़ की 
अभिव्यक्ति नहीं हो 
तुम वो हो 
जिसे सुनने के बाद 
दुनिया मुझे पहचान जाती है 
मैं कौन हूँ 
कहाँ से हूँ 
ये जान जाती है 

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