हवा में उड़ते
चमकते बिछलते टूटते
आकाशीय तारे
कब बिखरे
मेरी धरती पर,
बन कीड़े मकोड़े
लाठियाँ खाते
नाम शाहीन बाग़ का देते।
कचरा जीवन जीते
दागी गोलियों में
जनरल डायर का नाम खोजते
भगत सिंह का नाम तोलते
शैक्सपीयर के नाटक में
अदाकारी जोड़ते
और . . .
‘लाईक ए स्वाइन आन द सोइल’
जीवन जीने का नाम खोजते।
मेरे लोग हीरे जैसा जीवन गँवाते
ज़ुबाँ से कर देते
उड़न-छू ग़ालिब
बसीर फिरते दफ़नाते
भुखमरी लाचार ज़िन्दगी ढोते
कर्म कहीं
भ्रम कहीं पालते
जड़ें पाताल में खोजते
घर वापसी पर बेघर हो
लुटे-पिटे से अपने पिंजर
आप ढोते
अथक चलते जाते