हमारे बड़े कहीं जाते नहीं वो यही रहते हैं . . .
हमारे मध्य . . .
वो झलकते हैं कभी किसी के चेहरे से,
और कभी किसी की बातों के लहजे से
कभी किसी बच्चे के तेवर में,
कभी किसी के संस्कार में,
कभी किसी की मुस्कान में,
कभी किसी के अभिमान में
कभी किसी के स्नेही स्वाभाव में
कभी किसी के निश्छल अनुराग में
वो यही हैं . . .
वो दीवारों में टँगी तस्वीरों में नहीं हैं
वो हमारे मानस में हैं
हमारी ऊर्जा, हमारी विश्वास में
हमारे संकल्प, हमारे साहस में हैं
हमारी प्रेरणा, हमारे प्रयास में हैं
वो यही है . . .
हमारे आचारों में, हमारे विचारों में।
हमारी भावनाओं में . . .
हमारे मूल्यों में . . .
हमारे रीत रिवाज़ों में . . .
हमारे रसोई के स्वाद में
वो यही है,
स्थूल देह में नहीं,
मगर एक सूक्ष्म अणु के रूप में . . .
हमारे अन्तरमन के एकांत में . . .
वो यहीं है . . .!!