कविता की किताब पढ़ते-पढ़ते आँख लग गई
मैरी ओलिवर ने पूछा
क्या करोगी अपनी इकलौती उत्कृष्ट ज़िन्दगी के साथ
तुम्हें अच्छा होने की आवश्यकता नहीं
तुम्हें घुटनों के बल चलने की आवश्यकता नहीं
कुछ तुम अपना दर्द सुनाओ, कुछ मैं अपना
पेंटिंग देखते-देखते उसमें जैसे खो गई
मॅरी प्रॅट ने कहा
इमेज ही बन जाओ, रंग भावना है
जो सामने है उसमें छिपे छोटे-छोटे यथार्थ हैं
साधारण में है अपनापन, गहराई है
ज्यों अंगूरों के गुच्छे में, सृष्टि समाई है
काउच पर बैठ उँघते-उँघते आँख लग गई
मेरी अंतरात्मा ने कहा
अनुभव ही लिख जाओ, मन की बात दिखाओ
मैरी ओलिवर की सुन लो, मॅरी प्रॅट की समझ लो
मेरी समझ आया यह—मेरी माया मुझ से विस्तृत
शिवोहम शिवोहम शिवोहम
शिवोहम शिवोहम शिवोहम
शिवोहम शिवोहम शिवोहम