
स्व. सुषम बेदी - परिचय
उपन्यासकार एवं लघुकथा लेखिका सुषम बेदी का जन्म फिरोजपुर (पंजाब) में हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. करने के पश्चात उन्होंने पी.एच.डी पंजाब विश्वविद्यालय से की और उनका शोध का विषय था- “हिन्दी नाट्य प्रयोग के सन्दर्भ में”। उन्होंने 1978 से लिखना प्रारम्भ किया। अब उनका नाम समकालीन कथा और उपन्यास लेखन में जाना-माना नाम है। उनके अधिकतर उपन्यास पश्चिमी जगत के प्रवासी भारतीयों के अनुभव, परिस्थितियों, अनुभवों और अंतरद्वंद्वों को व्यक्त करते हैं। उन्होंने उन्होंने एम.ए.(दिल्ली विश्वविद्यालय) और पी.एच.डी पंजाब विश्वविद्यालय से की। सुषम बेदी हिन्दी को अतिरिक्त पंजाबी, अंग्रेज़ी, फ्रैंच, उर्दू और संस्कृत भाषाओं का धाराप्रवाह ज्ञान था।
1975 तक दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन के पश्चात अपने पति के साथ ब्रस्सलज़ (बेलजियम) चली आयीं और वहाँ रहते हुए “टाईम्स ऑफ़ इंडिया” की संवाददाता बनीं। 1979 में यू.एस.ए. में प्रवास करने के पश्चात कोलम्बिया विश्वविद्यालय में हिन्दी भाषा एवं साहित्य का अध्यापन आरम्भ किया।
सुषम बेदी की पहली कहानी “कहानी” नामक पत्रिका में 1978 में प्रकाशित हुई। अमेरिका आने के पश्चात वह कई उपन्यास लिखे। जैसे कि- हवन (1989); लौटना (1992); क़तरा दर क़तरा (1994); चिड़िया और चील- लघु कथा संग्रह (1995); इतर (1998); गाथा अमरबेल की (1999); नवभूम की रस-कथा (2001)। उनकी अनेक कृतियों का अनुवाद कई भाषाओं में हो चुका है।
सुषम बेदी का सम्बन्ध रंगमंच, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर अभिनेत्री के रूप में भी रहा है।
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संपादकीय - सुषम बेदी जी की सशक्त लेखन सुषमा-एक विनम्र श्रद्धांजलि
सुषम बेदी जी प्रवासी हिंदी लेखकों में अग्रगण्य लेखिका थीं और रहेंगी। उनके अचानक चले जाने ने सभी को बेहद चौंका सा दिया। प्रवासी हिन्दी समाज में एक बड़ा ख़ालीपन पैदा हो गया है। जीवन की अनिश्चतता के बारे में हम दार्शनिक स्तर पर सोचते तो हैं पर व्यावहारिक स्तर पर उसका सामना करना आसान नहीं होता। मनुष्य की कर्म शक्ति मृत्यु के साथ समाप्त हो जाती है, इस करुण स्थिति में लेखक को एक विशेष अनुकूलता मिली रहती है क्योंकि वह जा कर भी अपने शब्दों से पाठकों के भीतर भाव और विचार को जगाने का कर्म करता रहता है। सुषम जी भी अपने प्रिय पाठकों के बीच अपनी रचनाओं के माध्यम से हमेशा यह काम करती रहेंगीं। उनके निरंतर लेखन का परिणाम हैं, उनके 9 उपन्यास और चार कहानी संग्रह, विचार विमर्श के ग्रंथ और कविता संग्रह। साहित्य को इतना कुछ देने वाली सुषम जी के भाव और विचार अनेक कथाओं के माध्यम से हमारे बीच हमेशा जीवित रहेंगे। उनके मित्र और परिचित एक बात को बार-बार याद कर रहे हैं, वह है उनका बिंदास व्यक्तित्व और स्पष्ट विचारधारा। साफ़गोई उनके व्यक्तित्त्व में भी थी और उनकी हर कहानी में भी। स्थितियों के तनाव को ना भूलते हुए भी जीवन को जीने की भरपूर कोशिश उनके अपने व्यक्तित्व में थी और यही बात उनकी कहानियों और उपन्यासों के चरित्रों में भी दिखाई देती है।
सुषम जी के उत्कृष्ट लेखन को कई सम्मानों से सम्मानित किया गया। साहित्य अकादमी के साथ ही प्रवासी लेखन के लिए दिया जाने वाला राष्ट्रपति सम्मान ’सत्यनारायण मोटुरि पुरस्कार’ भी २०१८ में उन्हें दिया गया।
एक लेखक के रूप में सुषम जी जितनी सफल हुईं, उतनी ही सफल वह एक प्राध्यापिका के रूप में भी थीं। उन्होंने भारत और फिर अमरीका में कई वर्ष हिन्दी पढ़ाई। हिंदी पढ़ाने के अनेक तरीक़े खोजे ताकि विदेशी छात्र-छात्राएँ इस भाषा को सरलता से, वैज्ञानिक रूप से सीख सकें। इस संदर्भ में उनके कुछ वीडियो यहाँ पर देने की चेष्टा की है।
एक रेडियो कलाकार, रंगमंच अभिनेत्री और फिर बाद में अंग्रेज़ी फ़िल्मों और टी.वी. सीरियलों में भी अपने अभिनय से उन्होंने ख्याति अर्जित की। उनके अभिनय को आप इन सीरियल और फिल्मों में देख सकते हैं: True Crime: New York City, Third Watch, और Law & Order: Special Victims Unit, फ़िल्में: The Guru (2002) और ABCD (1999)
बहुमुखी प्रतिभा की धनी सुषम जी अपने अध्यापन, लेखन और अभिनय जैसे अनेक माध्यमों से जो पदचिन्ह हमारे बीच छोड़ कर गईं हैं, वे हमें सदैव समृद्ध करते रहेंगे।
साहित्यकुंज.नेट पर इस विशेषांक को प्रकाशित करने के लिए सुमन जी का बहुत धन्यवाद। इस विशेषांक को पत्रिका में जोड़ने के लिए उन्होंने पत्रिका के अंदर ही एक स्वतंत्र पत्रिका बनाने में बहुत मेहनत की है। इस विशेषांक का पहला अंक सुषम जी की स्मृति को अर्पित है। एक लेखक के लिए सच्ची शृद्धांजलि यही होती है कि उसका साहित्य पढ़ा जाए और उसका विवेचन/ विश्लेषण हो। इस विशेषांक में हमारी शृद्धांजलि भी यही है कि हम सुषम जी के लेखन पर कुछ बात करते हुए पाठकों को सुषम जी की रचनाओं को पढ़ने और उसकी गहराई को समझने के लिए प्रेरित कर सकें। इस विशेषांक के लेखक मित्रों ने अपने लेख हमें भेज कर इस विशेषांक को आकार देने में बहुत मदद की है, हम उनके हृदय से ऋणी हैं। इन लेखों में उन्होंने सुषम जी के साथ व्यक्तिगत संस्मरणों के बीच उनके लेखन का भी बहुत सुन्दर विवेचन किया है। कुछ लेखकों की रचनाएँ साहित्यकुंज में पहले भी प्रकाशित होती रहीं हैं पर दो लेखक पहली बार इस पत्रिका से जुड़े हैं; श्री अनिल जोशी जी और डॉ. विजय शर्मा जी! नि:संदेह यह जुड़ाव सुषम जी के प्रति आदर और उनके लेखन से प्रेम के कारण ही संभव हुआ है। हम उनके सहयोग के लिए बहुत आभारी हैं। इस विशेषांक में हम सुषम जी के संबंध में आने वाली और भी सामग्री को आगे जोड़ते रहेंगे। अत: आप अगर सुषम जी पर कुछ लिखना चाहते हैं तो आपका स्वागत है।
- डॉ. शैलजा सक्सेना