विशेषांक: कैनेडा का हिंदी साहित्य

05 Feb, 2022

चार्ली हेब्दो को सलाम करते हुए

कविता | धर्मपाल महेंद्र जैन

[पेरिस की कार्टून पत्रिका चार्ली हेब्दो को जहाँ 2015 में आतंकियों ने 12 लोगों को मार डाला था] 

 

अख़बार के दफ़्तर 
न संसद होते हैं 
न सुप्रीम कोर्ट 
न वेटिकन। 
वे आईना होते हैं 
टूटे-फूटे, तड़के और चटके 
फिर भी वे बताते रहते हैं 
जनता के हिस्से का सच। 
 
वहाँ बैठे लोग 
सामना कर रहे होते हैं 
बरसों से तनी मशीनगनों 
हैंड बमों, टैंकरों का 
काग़ज़ और पेन पकड़े 
आड़ी-टेड़ी रेखाएँ खींचते हुए। 
 
आतंकियों सुनो
चार्ली हेब्दो की इमारत 
कह रही है 
अख़बार की जीभ काटोगे
करोड़ों शब्द निकल आएँगे
अपने शब्दकोशों से। 
अख़बार की आँखें फोड़ोगे 
अरबों लोगों की आँखें 
देखने लगेंगी उनकी जगह। 
 
चार्ली हेब्दो में बहा ख़ून 
अभिव्यक्ति को सींचेगा पैनेपन से 
देखना तुम 
वह हर बार सिद्ध कर जाएगा 
तलवार पर भारी पड़ती है 
क़लम की धार। 

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