पेड़ पर फुदकती है चिड़िया
पत्ते हिलते, मुस्कुराते
चिड़िया पत्तों में भरती है चमक,
डाली कुछ लचक कर समा लेती है
चिड़िया की फुदकन अपनी शिराओं में,
और हरहरा उठता है पेड़
पेड़ खड़े हैं सदियों से,
चिड़िया है क्षणिक
पर चिड़िया का होना ज़रूरी है॥
चिड़िया के गान पर गा उठता है पूरा जंगल,
चिड़िया खींच लाती है सूरज की किरणों को,
तान देती है पेड़ों के सिरों पर
धँस जाती है उन घनी झाड़ियों में
जो वंचित है सूरज की ममता से,
चोंच से खोदती है मिट्टी में,
उजाले के अक्षर,
बोती है उनमें जीवन के कुहुकते बीज
परों से सहला देती है दबी, कुचली घास को,
जिनको नहीं अपने महत्त्व का भान
चिड़िया उन सब तक लाती है जीवन का गान!
जंगल है सदियों से
चिड़िया है क्षणिक
पर चिड़िया का होना ज़रूरी है॥
ठीक वैसे ही,
जैसे,
कीचड़ सनी, धान रोपती औरतों का फूटता गान
ज़रूरी है धान में मिठास बनाए रखने के लिए,
मज़दूर के सिर पर रखे गारे के तसले का संतुलन
ज़रूरी है चूल्हे की आग को बचाए रखने के लिए,
जैसे मेले में बच्चे की इच्छा और ज़िद
ज़रूरी है बचपन बचाए रखने के लिए,
जैसे किशोरियों की आँखों में उपजते सपने
ज़रूरी हैं दुनिया में सरलता बचाए रखने के लिए
जैसे कट कर भी उग आने वाले पेड़
ज़रूरी हैं हरियाली बचाए रखने के लिए,
जैसे हार कर भी हार न मानना
ज़रूरी है मनुष्यता बचाए रखने के लिए . . .!!
सदियों से चल रही है दुनिया
क्षणिक है आदमी,
पर दुनिया के लिए
ज़रूरी है आदमी का आदमी बने रहना!
ठीक वैसे ही
सदियों से खड़े हैं जंगल,
और क्षणिक है चिड़िया
पर जंगल के लिए
ज़रूरी है चिड़िया का बचे रहना॥