नहीं है आवश्यकता,
किसी ज्योतिषी की मुझे,
क्यों कि,
जो समझ रही हूँ,
“कि मैं हूँ”
वह मैं हूँ ही नहीं,
एक विभ्रम है।
क्यों कि,
जिस सबको अपना,
समझ रही हूँ,
कि“यह मेरा है,”
वस्तुत: वह मेरा है ही नहीं,
सौग़ात है प्रभु की।
वास्तव में जीवन,
एक अभिनय है,
जगत एक रंगमंच,
और मैं, एक अदना सा पात्र।
जिस देश में,
परिवेश में,
जिस वेश में,
विधाता ने, है मुझे भेजा,
वह, नियति है मेरी।
जिस भी जगह मैं हूँ,
वहाँ, उस रंगमंच पर,
अभिनय करना है मुझे।
मेरा कुटुम्ब व सब रिश्ते नाते,
अन्य पात्र हैं,
इस नाटक के।
न कोई स्क्रिप्ट है,
न मिलेगा अवसर एक भी,
रिहर्सल के लिये,
इस नाटक का।
मिला है रोल जो मुझे,
अदा करना है उसे,
बहुत ध्यान से,
चुनने है स्वयं मुझे अपने,
आवेग, संवेदनायें व भाव भंगिमायें,
कुशलता से, विवेक से, सरलता से,
निभा सकूँ यह अभिनय
चाह है मेरी।
भूमिका मिली है,
पात्र मिला है,
पर स्क्रिप्ट नहीं।
और मिला है,
स्क्रिप्ट लिखने का,
भारी उत्तरदायित्व,
जी हाँ, इक अनोखा अवसर,
अपनी स्क्रिप्ट लिखनी है मुझे स्वयं,
तत्क्षण, प्रति क्षण, आजीवन,
जैसा चाहूँ,
लिख सकती हूँ वैसा
मनमाना लिख सकती हूँ अपना भाग्य,
स्वेच्छा से, मन मर्ज़ी से,
बहुत ’स्कोप’ मिला है मुझे।
माँग रही हूँ प्रभु की अनुकम्पा,
लिखती रहूँ, यह स्क्रिप्ट,
अभूतपू्र्व कुशलता से।
नहीं है आवश्यकता,
किसी ज्योतिषी के,
पास जाने की,
क्यों कि मैं हूँ,
स्वयं निज भाग्य विधाता।