विशेषांक: कैनेडा का हिंदी साहित्य

05 Feb, 2022

सोंधी स्मृतियाँ

कविता | कृष्णा वर्मा

अम्मा के आँचल में था
ख़ुश बचपन मेरा
चन्दा के घर था
परियों का डेरा
 पलकों पर नींदें थीं 
सपनों का फेरा 
बाँहों के झूले थे 
काँधे की सवारी 
पीठ का घोड़ा था 
थी मस्ती किलकारी 
छोटी-सी चाहें थीं 
भोली-सी बातें 
तनिक रूठ जाते
थे सारे मनाते 
गलियाँ बुलाती थीं
अपना बताती थीं
संगी थे, साथी थे
ख़ुशियों की थाती थी
रूठी अब राहें हैं
अपने पराए हैं
सपने न नींदें हैं
रातें जगाए हैं
दिखावा छलावा है
झूठ चालाकी है
अपनापा क़ब्रों में
प्रेम प्रवासी है
नानी औ दादी अब
बीती कहानी है
बाँचे व्यथा किससे
चहुँ दिश वीरानी है। 

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