विशेषांक: ब्रिटेन के प्रसिद्ध लेखक तेजेन्द्र शर्मा का रचना संसार

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तेजेन्द्र शर्मा  बहुमुखी पप्रतिभा के साहित्यकार हैं। प्रवासी कहानियों में उनका कोई तोड़ नहीं है। कहानियों की प्रस्तुति इतनी मार्मिक और शानदार करते हैं कि लगता है कोई फ़िल्म चल रही है। बहुत कम लोग जानते हैं कि कविता तेजेन्द्र शर्मा की प्रिय विधा है। वह जिस मन से कविताएँ और ग़ज़लें लिखते हैं उसी मन से उसे पढ़ते और गाते भी हैं। तेजेन्द्र शर्मा की कविताओं पर पर कुछ लिखूँ उससे पहले एक कहानी सुनाती हूँ। 'बात उन दिनों की है जिन दिनों हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार विष्णु प्रभाकर बंगला के अप्रतिम कथाकार शरत चंद्र की जीवनी 'आवारा मसीहा' लिख रहे थे। उन्हीं दिनों शरतचंद से मिलने के लिए जब वह बंगाल पहुँचे तो पता चला कि, आजकल शरतचंद किसी वेश्यालय में रह रहे हैं। अपने प्रिय रचनाकार की इस घटना ने विष्णु जी को अचंभित किया। वह जानते थे शरत चंद महान और लोकप्रिय साहित्यकार हैं के साथ… आगे पढ़ें
आज से क़रीब दस ग्यारह वर्ष पहले आदरणीय ज़किया ज़ुबैरी जी की संस्था एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स ने मेरी 19 कहानियों की एक ऑडियो सीडी बनवायी थी। इस सी.डी. में मेरी कहानियों का पाठ किया टीवी एवं मंच कलाकार शैलेन्द्र गौड़ एवं रेडियो कलाकार प्रीति गौड़ ने। इस सीडी की भूमिका लिखी थी मरहूम जगदम्बा प्रसाद दीक्षित जी ने।  मेरे प्रिय मित्र एवं प्रो. राम बख़्श इन दिनों वाशिंगटन अमरीका में हैं। वहाँ अपने पौत्र के साथ रिटायर्ड जीवन का आनन्द उठा रहे हैं। मैंने उन्हें अपनी ऑडियो कहनियों का लिंक भेज दिया और वहाँ 5 मार्च से उन्होंने लगातार मेरी कहानियों को पढ़ना शुरू किया और छोटी/लम्बी प्रतिक्रियाएँ भेजना शुरू कर दिया। जैसे ही एक कहानी पढ़ते पाँच सात पंक्तियाँ फ़ेसबुक मैसेंजर पर टिप्पणी भेज देते। It is a very satisfying experience for any writer when such a senior Professor of Hindi literature finds time to read, brood over and… आगे पढ़ें
‘सौंदर्य’ शब्द की व्युतपत्ति संस्कृत के सुन्दर विशेषण शब्द से भाव अर्थ में ‘अञ’ प्रत्यय से जुड़कर होती है। सौंदर्य इतना सूक्ष्म भावगर्भित शब्द है कि यह अपने शुद्ध रूप में रसानुभूति से घनिष्ठतम रूप में संबद्ध है। डॉ. रामेश्वर खंडेलवाल ने ‘सौंदर्य’ शब्द के प्रति अपने विचारों को कुछ इस तरह प्रकट किया है कि, “सौंदर्य शब्द के अर्थ में वस्तुतः अनेक भाव समाविष्ट हैं जैसे - सौम्य, मनोहर, उदान्त, पेशल, रमणीय, चारू, मंजुल, रुचिर, शोभन, सुषमावान, लावण्यमान, कांत, साधु, मनोज, द्युतिवाल, छविमान, मंगलकारी और शुभ आदि।”  सौंदर्यानुभूति – “सौंदर्य की आनंदमयी अनुभूति को सौंदर्यानुभूति कहते हैं। अर्थात प्रकृति, मानव-जीवन तथा ललित कलाओं के आनंददायक गुण का नाम सौंदर्य है। सौंदर्य का स्वरूप ऐंद्रिय भी है और अतींद्रिय भी। इसका साक्षात्कार प्रायः स्थूल रूप ज्ञानेंद्रियों से, बुद्धि से तथा हृदय से माना जाता है।  किसी भी रमणीय एवं सुन्दर पदार्थ या वस्तु को देखकर नेत्र विस्मय-विमुग्ध हो जाते हैं;… आगे पढ़ें
‘इस महानगर ने अपनी झोली में मेरे लिये न जाने क्या छुपा रखा है कि यही मेरी कर्मभूमि बन गया है।’   ब्रिटेन जैसे देश में हिंदी को सम्मान दिलवाने वाले हिंदी की पताका को गर्व से लहराते हुए, हिंदी गौरव माननीय तेजेंद्र शर्मा जी लंबे अरसे से कहानी विधा को नए आयाम प्रदान करते आ रहे हैं। लेकिन कथाकार के साथ-साथ उनके भीतर का कवि भी काव्यात्मक सौष्ठव की सुगंध साहित्य में बिखेरता रहता है। कहीं प्रवासी संवेदनाएँ विचलित करती है। अपनों की यादें रह-रह कर घेरे रहती है। मन सहज ही कह उठते हैं-      तुम्हारी याद की इंतिहा ये है कि हीरे से कांच तक सोने से पीतल तक और रद्दी से अनमोल तक हर शै से जुड़ी हैं तेरी यादें। प्रवासी अपना देश छोड़ कर दूसरे देश में जाकर बस जाता है। देश से दूर जाने के कई कारण होते हैं। आर्थिक उन्नति, विवाह के उपरांत… आगे पढ़ें
कवि होना न तो साधारण बात है, न ही असाधारण अपितु यह तो सौभाग्य का विषय है। वह उस देश का हो या इस देश का हो, वह इस माटी का हो या उस मिट्टी का हो। उसका जन्म कहाँ हुआ, वह कहाँ रहता है...? और आज कहाँ बस गया है? वह किसकी उपासना करता है या नहीं भी करता। उसका विश्वास हमसे अलग है या वो हमारा विश्वासी या हाम्मी है। यहाँ यही सबसे ख़ास और प्रमुख है कि श्रद्धेय तेजेन्द्र शर्मा का कवि होना ही बड़ी बात है और उनकी शब्द प्रसवनी लेखनी ने जो शब्द प्रसूत किए हैं उसे नाम दिया गया है ’मैं कवि हूँ इस देश का’।  कवि, जो शेष रहता है, जिसे सब छोड़ देते हैं या जो उपेक्षित कर दिया जाता है और विशेष, जो श्रेष्ठ होता है, जिसे सुंदर कहते हैं, वह भी उसके आकर्षण का केन्द्र बनता है परन्तु यदि वह… आगे पढ़ें
अपना घर बार छोड़ कर किसी विदेश में आकर बसने का दुख वही जानता है जिसने इसे भुगता हो। 60 का दशक ऐसा समय था जब बहुत से भारतीयों ने अपना बसेरा ब्रिटेन में बसाया। इसमें बहुत से शिक्षक थे और कुछ कहानियाँ और कविताएँ भी लिखते थे। देश छूटने की कसक वह अपने लेखन द्वारा निकालने लगे।  कहानियाँ अधिकतर नॉस्टेल्जिया पर आधारित होतीं जो उन्हीं लेखकों तक ही सीमित रह जातीं। बरसों यहाँ रहते हुए और इतना सब लिखते हुए भी किसी का एक भी कहानी संग्रह सामने नहीं आया था। समय एक जैसा नहीं रहता। 90 के दशक में भारत के प्रसिद्ध कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा ब्रिटेन में आए। वह दूसरे लोगों के समान किसी मजबूरी में यहाँ नहीं आए थे। भारत में उन्होंने बहुत अच्छे दिन देखे थे। किन्हीं निजी कारणों से भारत में अपनी एयरलाइन की नौकरी छोड़ कर वह ब्रिटेन में बसने आ गए। हिंदी लेखन… आगे पढ़ें
हिंदी के प्रवासी लेखकों में तेजेंद्र शर्मा एक प्रमुख कवि माने जाते हैं। उनकी कविता में विषय-वैविध्य के साथ साथ मानवाधिकार से जुड़ेे कुछ पहलू भी नज़र आते हैं। कहानी के अपेक्षा उन्होंने कविताएँ अपेक्षाकृत कम लिखी हैं लेकिन उन कविताओं में मानवीयता देखी जा सकती है। पंजाब में 1952 को जन्मे तेजेंद्र शर्मा आजकल प्रवासी साहित्य का चर्चित नाम है।  आज विश्व साहित्य में मानवाधिकार को लेकर काफ़ी कुछ लिखा जा रहा है, उसकी चर्चा हो रही है। इस दिशा में प्रवासी रचनाकारों में तेजेंद्र शर्मा का नाम उल्लेखनीय है। उनकी कविता में एक प्रकार की विविधता देखी जा सकती है। एक ओर तो यह कवि अपनी राष्ट्रभक्ति दिखलाता है तो दूसरी और प्रवासी भारतीय होने के नाते उस देश से भी लगाव और अपनत्व का प्रदर्शन करता है। इस प्रवासी रचनाकार ने उस देश की संस्कृति परिवेश को लेकर भी लिखा है। उनके लेखन में एक प्रकार की… आगे पढ़ें
अपनी सदी का बेजोड़ कहानीकार, अपनी कहानियों के अनोखे चरित्रों का विधाता, रस-सृष्टि की गंगा का भागीरथ यदि किसी को निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है तो एक ही नाम उभर कर सामने आता है और वह नाम निस्संदेह "तेजेन्द्र शर्मा" ही हो सकता है। तेजेन्द्र शर्मा का कथासंसार अद्भुत है। यह वह सागर है जिसमें मोती ही मोती भरे पड़े हैं। जिस मोती को छुओ, वही बहुमूल्य। किसे लें, किसे छोड़ें। जो कहानी उठा लो, लगता है बस इससे अच्छा और कुछ हो ही नहीं सकता। फिर अगली कोई और कहानी, फिर और, फिर और... सबका जादू एक से एक बढ़ कर सर चढ़ कर बोलता है। जो कहानी सामने आती है, लगता है बस हम इसी के हो गये।  हर कहानी का सम्मोहन पाठक के मन को ऐसा बाँध लेता है कि फिर छूटने की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती। फिर तो मन कहानी के चरित्रों के… आगे पढ़ें
एक परिपूर्ण कहानीकार के रूप में हिंदी साहित्य में अपनी लेखनी की अमिट छाप छोड़ने वाले तेजेंद्र शर्मा के नाम से आज साहित्य जगत परिचित है। दिल से लिखनेवाले इस कहानीकार की कहानियाँ परिपक्व हैं। वे चरित्रों के दर्द दिल में महसूस करते हैं, जिनकी कहानियाँ एक शोध है जिसमें सामाजिक बन्धनों का अनुबंध है, वर्तमान की वास्तविकता है और कल्पना में भी सत्य एक शोध बनकर उभारता है। यथार्थ का अनुभव परत-दर-परत दिखाई देता है। संवेदना की तीव्रता और आधुनिक यथार्थ का मिश्रण तथा दृष्टि को और अधिक पैनी बनाते हैं। तेजेंद्र जी की घनिष्ट मित्र ज़किया ज़ुबेरी लिखती है, ’तजेंद्र शर्मा की लेखन प्रक्रिया एक मामले में अनूठी है। वे अपने आसपास होनेवाली घटनाओं को देखते हैं, महसूस करते हैं और अपने मस्तिष्क में मथने देते हैं, जब तक कि घटना अपनी कहानी का रूप ग्रहण नहीं कर लेती। तेजेंद्र जितने अच्छे कहानीकार हैं उतने ही अच्छे इन्सान… आगे पढ़ें
हिन्दी भाषा साहित्य में कथाकार श्री तेजेन्द्र शर्मा की पहचान विश्व-व्यापी है। उनकी जीवन-यात्रा के समान ही कहानियों की यात्रा ने "जितनी ज़मीं उन्हें मिली, उतना आसमां छुआ है”। वैसे तो गीत लिखे जायें, कविता, या कहानी लेखक की संवेदनाओं की झलक उनमें व्याप्त होती है।  लेखक को एक व्यक्ति की भूमिका में देखने का अवसर मुझे वर्ष 2018 में मिला जब मैं पारिवारिक यात्रा पर लंदन (यू.के.) गई। मैंने तेजेन्द्र जी के दो कहानी संग्रह, ग़ौरतलब कहानियाँ और बेघर आँखें, भारत में पढ़े थे। लंदन के नेहरू सेन्टर में एक साहित्यिक सम्मेलन में आदरणीय से भेंट हुई। वे अपने किरदार में भी उतने ही सच्चे दिखे जितना वो अपने लेखन में होते हैं। किसी प्रतिष्ठित साहित्यकार से जिस तरह मिलते हैं वैसे ही एक नये उभरते हुए रचनाकार के प्रति आदर/स्नेह भाव रखते हैं। तेजेन्द्र जी ने मुझे कथा यू.के. के एक आयोजन में रचना पाठ हेतु आमंत्रित किया… आगे पढ़ें
आज सौ वर्षों से अधिक की हो चुकी हिंदी कहानी ने अपनी इस विकास-यात्रा में विभिन्न आन्दोलनों और विमर्शों से गुज़रते हुए परिवर्तन के विविध पड़ावों को पार किया है। इस कालखण्ड में हिंदी कहानी युद्ध के मैदानों से सड़कों, सड़कों से घरों और घरों में रसोई से लेकर शयनकक्ष तक पहुँची है। सरल शब्दों में कहें तो हिंदी कहानी के विषयों का फलक इन सौ वर्षों में निरंतर रूप से विस्तार को प्राप्त हुआ है; और तेजेंद्र शर्मा की कहानियाँ भी अपने में इसी विस्तार के एक बड़े हिस्से को समेटे हुए हैं। 1980 में ‘प्रतिबिम्ब’ नामक कहानी से अपने कथा-लेखन का आग़ाज़ करने वाले तेजेंद्र शर्मा की कहानियों में समय के साथ कथ्य के स्तर पर व्यापक परिवर्तन दिखाई देते हैं। देखा जाए तो तेजेंद्र शर्मा के समग्र कथा-साहित्य के विषयों के तीन स्रोत प्रतीत होते हैं। एक, जो खुराक जीवन से उन्हें मिली यानी जो उन्होंने ख़ुद… आगे पढ़ें
बदलते समय के परिदृश्‍य में हिंदी कथा साहित्‍य का क्षेत्र भी बदला है और आज हम सभी इस बदलाव को पूरी तरह से न सही परंतु आंशिक रूप से थोड़ा और अधिक स्‍वीकार कर चुके हैं या यूँ कहें कि हम स्‍वीकार कर रहे हैं।  प्रश्‍न यह है कि किस स्‍वीकारोक्‍ति की बात हो रही है? तो उत्‍तर है कि भारत से इतर रचे जाने वाले साहित्‍य की। प्रत्‍येक देश और उस देश में स्‍थित समाज का अपना कोई न कोई महत्‍व होता है। वह महत्‍व सामाजिक क्षेत्र का भी हो सकता है, आर्थिक क्षेत्र का भी और राजनैतिक क्षेत्र का भी हो सकता है और सांस्‍कृतिक क्षेत्र का भी।  परंतु हर वह देश प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति के लिये महत्‍वपूर्ण एवं सुखद अनुभूति प्रदान करनेवाला होता है, जहाँ उसके नागरिक सुखी एवं स्‍वतंत्र रूप से निवास कर सकें। वह देश एवं उसका समाज तभी अपने नागरिकों के लिये गौरव का विषय… आगे पढ़ें
समकालीन प्रवासी कथा साहित्यकारों में तेजेन्द्र शर्मा का नाम चर्चित कहानीकारों में से है। प्रवासी साहित्यकार अपनी अन्वेषणीय व मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से न सिर्फ़ भारतीयों बल्कि पश्चिमी संस्कृति से जुड़े लोगों की वेदनाओं और पीड़ाओं को महसूस करके, न‌ई-नई कथाओं का सृजन कर रहे हैं। इससे कथा संसार को बहुत विस्तार मिला है। जो भारतीय विदेशों में नौकरियाँ करने जाते हैं वे अपने परिवेश और आत्मीय संबंधों से दूर रहकर एक नई दुनिया बसाते हैं। उनके लिए वहाँ की संस्कृति, स्थितियों-परिस्थितियों और लोगों के साथ तारतम्य स्थापित करना आसान नहीं होता है। जिसकी वज़ह से अनगिनत द्वंद्वों-अंतरद्वंद्वों से उनका सामना होता है और बहुत-सी समस्याएँ सामने आती हैं जिनको एक उत्कृष्ट साहित्यकार अपनी सूक्ष्म दृष्टि से पकड़ कर कहानियों या कविताओं का रूप देता है। अगर हम तेजेंद्र शर्मा जी की कहानियों की बात करें तो उनका अन्वेष्णात्मक दृष्टिकोण ही उनकी कहानियों को विषयगत विविधता देता है। तेजेन्द्र… आगे पढ़ें
प्रवासी साहित्य का मूल कथ्य परदेश में स्वदेश के मूल्य, संस्कृति, अनुभूतियों को अक्षुण्ण रखने वाले भारतीयों की मानसिक छटपटाहट है। प्रवासी साहित्य प्रवासी भारतीयों के द्वन्द्व को हिंदी पाठकों के सामने पूरी ईमानदारी से प्रस्तुत कर रहा है। भूमंडलीकृत समाज में प्रवासी साहित्य भारतेतर हिंदी साहित्य की एक नयी पहचान तथा एक नया साहित्यिक विमर्श बन कर उभर रहा है। हिंदी पाठकों के मन में भी प्रवासी सहित्य अनेक प्रश्न उत्पन्न कर रहा है कि प्रवासी देशों में भारतीयों का जीवन कैसा होगा, परदेश में स्वदेश की कोई सत्ता या अनुभूति नहीं तथा उस देश का परिवेश, जीवन प्रणाली, संघर्ष सभी उसके जीवन को किस हद तक प्रभावित करते हैं?  साहित्य बुनियादी तौर पर देश और काल से जुड़े मनुष्य को पहचानने और परिभाषित करने की रचनात्मक प्रक्रिया है। मनुष्य को किसी भी तरह निरपेक्ष सन्दर्भ में नहीं पहचाना जा सकता। मनुष्य की पहचान का अर्थ उसके व्यक्तिगत और… आगे पढ़ें
हमें अपने जीवन कला, संस्कृति, साहित्य, रंगमंच आदि के क्षेत्रों में कुछ ऐसे व्यक्तित्व मिलते हैं जिन्हें हम चलती फिरती संस्था कह देते हैं। ये लोग अपनी अद्भुत प्रतिभा से हमें प्रभावित करते रहते हैं। ब्रिटेन के साहित्य एवं समाज से जुड़े कथाकार तेजेन्द्र शर्मा एक ऐसी ही शख़्सियत हैं। यह कहना अनुचित न होगा कि अभिमन्यु अनंत के बाद प्रवासी साहित्य का सबसे पहचाना नाम तेजेन्द्र शर्मा ही है। तेजेन्द्र शर्मा किसी एक विधा से जुड़े व्यक्ति का नाम नहीं है। वे कहानीकार, कवि, ग़ज़लकार, मंच अभिनेता-निर्देशक, सिनेमा कलाकार, टीवी सीरियल लेखक, रेडियो पत्रकार, संपादक, मंच संचालक होने के साथ साथ ’कथा यूके’ संस्था के महासचिव भी हैं। हिन्दी भाषा और साहित्य को ब्रिटेन की संसद के हाउस ऑफ़ कॉमन्स एवं हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में ले जाने का श्रेय हम सीधे-सीधे तेजेन्द्र शर्मा को दे सकते हैं।  तेजेन्द्र शर्मा ब्रिटेन के एक अकेले कथाकार हैं जिनके लेखन पर धर्मवीर… आगे पढ़ें
मनुष्य जन्म व्यक्ति को मिला एक अनमोल वरदान है। जीवलोक की अनेक लक्ष योनियों से गुज़रकर मनुष्य जन्म मिलता है। मनुष्य की विशेषता यह है कि वह परिवार बनाकर रहता है। उसका परिवार उसके जीवन की ऊर्जादायिनी शक्ति होती है। परिवार नामक शक्ति की सहायता से ही वह जीवन में आनेवाली असंख्य बाधाओं का हँसकर सामना करते हुए उन पर विजय प्राप्त करता है। माँ, बाप, पति, पत्नी, बेटा, बेटी, भाई, बहन आदि अनेक सदस्यों से परिवार नामक इकाई बनती है। परिवार से ही समाज बनता है। इस समाज को आगे बढ़ानेवाली संस्था के रूप में विवाह संस्था सर्व प्रचलित है। वैवाहिक संस्कार से ही दो अपरिचित स्त्री और पुरुष प्रेम के बंधन में बँधकर अपना सारा जीवन व्यतीत करते हैं। विश्वास की डोर थामे दो अपरिचित स्त्री-पुरुष आजीवन एक-दूसरे का सुख-दुःख में साथ देते हुए प्रेमपूर्वक जीवन जीते हैं। उनके जवीन की नाव विश्वास के भरोसे ही जीवन-सागर पार… आगे पढ़ें
विश्व में भूमंडलीकरण की प्रक्रिया बहुत पहले शुरू हो चुकी थी, जिसके तीन चरण देखे जा सकते हैं लेकिन यहाँ विशेषतः अन्तिम चरण अर्थात् 1990 के बाद के भूमंडलीकरण एवं इसकी स्थिति को समझने की आवश्यकता है। यह एक ऐसी वैश्विक परिघटना है जो वैश्विक परिदृश्य पर आधारित है। समस्त विश्व की अर्थव्यवस्थाओं का एकीकरण भूमंडलीकरण का आधारभूत तत्व है, जिसमें माल, सेवा, वित्त, सूचनाएँ संस्कृतियाँ सभी कुछ परस्पर देशों में अबाधित रूप से प्रवाहित होती हैं। इसके अंतर्गत आर्थिक गतिविधियाँ स्वतंत्र बाज़ार के नियमों से संचालित होती हैं और बाज़ार का महत्त्व बढ़ने लगता है। परिणाम स्वरूप कॉरपोरेट जगत के अधिकार क्षेत्रों का विस्तार होने लगता है। दरअसल वैश्वीकरण का आधार ही बाज़ार और उपभोक्तावाद है जो विश्व की स्थानीय एवं सांस्कृतिक भिन्नता को एक रंग में रँगना चाहती है। यदि कहें तो भूमंडलीकरण एक ऐसी आँधी है जिसने तमाम विश्व की अस्मिताओं के समक्ष उनके अस्तित्व का संकट… आगे पढ़ें
कहानी किसी भी फ़िल्म की रीढ़ है- तेजेन्द्र शर्मा क़रीब दो वर्ष पहले सरसरी तौर पर हुई मुलाक़ात आज इस मोड़ पर ले आई है कि दूर-भाषीय यंत्र यानि टेलीफोन और साइबर ट्रेवल यानि नेटवर्क के माध्यम से लन्दन, यू.के में रहने वाले प्रवासी भारतीय कहानीकार, उपन्यासकार श्री तेजेंद्र शर्मा जी का साक्षात्कार लेकर आप सभी के समक्ष उपस्थित हूँ।  फ़रवरी २०१४ में दिल्ली के आज़ाद भवन में अखिल भारतीय संस्था-सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह में २०१४ के साहित्यिक केलेन्डर का लोकार्पण होना था, जिसमें अन्य चार साहित्यकारों के साथ तेजेंद्र शर्मा जी भी थे और मैं (पूनम माटिया) भी। कार्यक्रम में सञ्चालन की ज़िम्मेदारी भी मेरी थी और चूँकि तेजेंद्र जी को सम्मान मिलना था तो कुछ दिन पूर्व ही उनके विषय में मैंने थोड़ी बहुत जानकारी गूगल और फ़ेसबुक से ढूँढ़ निकाली हालाँकि मेरी फ़ेसबुक मित्रसूची में वे पहले से ही थे। मंच पर… आगे पढ़ें
वरिष्ठ साहित्यकार तेजेन्द्र शर्मा के कृतित्व पर लिखना, चुनौती भरा काम है। एक ऐसा साहित्यकार जो भारत में रहते हुए वैश्विक साहित्य रच रहा था और अब वर्षों से विदेश में रहते हुए वैश्विक साहित्य के साथ-साथ भारतीय संस्कृति पर भी लिख रहा है। जिसकी हर कहानी नया विषय, नया थीम लिए होती है। जो यह मानता है कि जब तक कुछ नया कहने को ना हो, नहीं लिखना चाहिए! यानी हर बार कुछ नया रचें! नयेपन की ललक के बावजूद शर्मा जी की कहानियों में मौत, स्त्री विमर्श और मानवीय संवेदनाएँ स्थायी चरित्र के रूप में विद्यमान रहते हैं। तेजेन्द्र शर्मा की अब तक प्रकाशित लगभग अस्सी-ब्यासी कहानियों में अनेक बार मौत का चित्रण हुआ है परन्तु हर बार मौत अलग-अलग चरित्रों में, अलग सामाजिक स्तर में और बिल्कुल पृथक अंदाज़ में आती है। कभी-कभी ऐसा भी हुआ कि शब्दों के माध्यम से चरित्र की मौत हुई पर दरअसल… आगे पढ़ें
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