ओ मेरी बिरहन रूह
कैसी तेरी भटकन
कैसी तेरी जिज्ञासा,
ले गई मुझे किन रास्तों पर
तेरी अद्भुत आकांक्षा!
रेगिस्तानी जगह एक
जंगल एक सुनसान
यहाँ पर था वो साधना-स्थान
काफ़ी देर से सोचों में
उभरता रहा जिसका नाम . . .
सज्दा इसे करने को
मैंने राहें कंधे धर लीं
सैंकड़ों कोस के सफ़र की
अंगुलियाँ मैंने पकड़ लीं . . .
वहाँ पहुँची तो
ख़ूबसूरत! सवारोओं1 ने बाँहें मेरे लिये खोल दीं
कँटीली झाड़ियों ने ख़ैरियत-सुख पूछ ली
उड़-उड़ कर मिट्टी मुझे आलिंगन में भरने लगी
अपनी सी लगती थी जब आँखों में पड़ने लगी . . .
कोसी-कोसी धूप की ऊष्णता को
पहली बार माना मैंने
क़ुदरत के इस रहस्य को
पहली बार जाना मैंने . . .
कँटीले-काँटों की मुहबबत को
पहली बार पहचाना मैंने . . .
चाहता था दिल
चलती जाऊँ . . . बस यूँ ही चलती जाऊँ . . .
रास्ते ना ख़त्म हों यह
मैँ इन रास्तों में ख़त्म हो जाऊँ . . .
इस लाल धरती का ज़र्रा-ज़र्रा
कुछ-कुछ कहता था
सितारों भरा आकाश मेरे साथ
सटक-सटक के बैठता था . . .
सप्त ऋषियों की काँवर
सदियों बाद देखी मैंने
इतना सुंदर चाँद था कि
ठगी सी रह गईं आँखें . . .
धरती का मैंने बिछौना किया,
अम्बर ख़ुद पर ओढ़ा मैंने
सभी सितारों को अंगुलियाँ
घुमा-घुमा कर जोड़ा मैंने
धरती, मैं और अम्बर तीनों
एक दूजे में इस तरह विलीन थे
चाहता था दिल मेरा बस यहीं रुक जाएँ . . .
यह कैसी साधना थी
किस तरह का कर्मा
मिट्टी को छू कर की
मैंने ब्रह्माण्ड की परिक्रमा . . .!!
1.सवारो-एरीज़ोना में उगने वाला कैकटस-‘Saguaro’