हथेली पे मेहँदी नहीं,
महल सजाया था . . .
तेरे संग मैंने,
नया जग बसाया था . . .
आँखों में काजल नहीं,
अरमान लगाया था,
तेरे संग जीवन का,
रिश्ता निभाया था . . .
माँग में सिंदूर नहीं,
ख़्वाब बसाया था,
तेरे संग उम्र भर,
साथ का वादा निभाया था,
मंत्रोचारण की अग्नि में,
अपना अतीत जलाया था . . .
भूल सब अपनों को कुछ
नयों को गले लगाया था . . .
मेरे क़दमों की आहट ने,
तेरा आँगन महकाया था,
परिक्रमा तो थी ली दोनों ने साथ,
फिर क्यों जलती हूँ मैं एकाकी . . . उदास . . .
तुम कहाँ खो गए . . . प्राण . . . मेरे प्राण।