निर्भय श्वास ले रहा, आज लाल चौक पर तिरंगा,
सशक्त करों में झूम रहा, जैसे शिव जटा में गंगा।
केसर उपजती जो घाटी, है केसरिया उसका मान,
न भूलों हमें मिली धरोहर, गुरु द्रोणाचार्य के बाण।
धैर्य सिखाया हमको बुध ने, महादेव ने तांडव,
मातृ भूमि के लिए हैं, हम मधुसूदन के पांडव।
सहिष्णुता को हमारी, समझ लिया अक्षमता,
विनाश काल में सदा विवेक ही पहले मरता।
कीट कीटाणु, प्राणी, जंतु में, हमने देखी अभिन्नता,
युग-युग से पाठ पढ़ाया, प्रेम सद्भावना और एकता।
बाधा विघ्न न डालो तुम, हमारा मार्ग प्रशस्त है,
एक हाथ में गीता है, दूजे में चामुंडी के शस्त्र है।