सफ़र है कहीं, सुहाना।
पर कहीं अनुतरित्त प्रश्नों के साए में,
कहीं कोई आहत मन,
हर साँस में कुछ कहता, कुछ ढूँढ़ता
पोर-पोर बिखरता, कितनी ही परतों में,
फिर-फिर हो उमंगित, फिर-फिर विस्मित
चहक-चहक उड़ता फिर-फिर।
सोच है, जोश है, कर्म हैं पास
है हर्षित मानस, उल्लसित अनगिनत उमंगित।
नित नव् उदित, उमंगित तरंगित लहरें
जो चकित सी तिरती, अधखुली आँखों के,
सपनों पर हो आच्छादित
कर जाती हैं अपने जादू का टोना।
रुलाकर-हँसाकर, नव-प्राण कर प्रवाहित
जिला जाती हैं बार-बार।
सफ़र है कहीं सुहाना।
पर कहीं अनुतरित्त प्रश्नों के साए में।
कहीं आहत मन,
हर साँस में कुछ कहता, कुछ ढूँढ़ता
पोर-पोर बिखरता, कितनी ही परतों में,
फिर भी उमंगित, फिर भी विस्मित
चहक-चहक उड़ता फिर-फिर।
नित ताल मिला, तेज़ रफ़्तार के साथ
सब कुछ पीछे छोड़, फिर आगे की सोच,
जिनमें कुछ है नियत, कुछ है अनजान।
और कितनी बार, विध्वंस, आहत के ढेर से
बरबस फूट पड़ता है, एक नवजीवन बीज,
फिर-फिर मन उग उठता है
छोटी-छोटी नव कोंपलों की हथेली खोल,
आसमान की ओर, नव आशा की मुस्कान लिए,
फिर से और, और भी जीवन्तता से जी उठता है।
कौन है यह निशब्द जो?
पोर-पोर बिखरता, कितनी ही परतों में।
फिर-फिर उमंगित, फिर-फिर विस्मित।
जो चकित सी तिरती, अधखुली आँखों के,
सपनों पर हो आच्छादित अनगिनत
कर जाती हैं अपने जादू का टोना
रुलाकर-हँसाकर, नव प्राण कर प्रवाहित
जिला जाती हैं बार-बार।
सफ़र है कहीं सुहाना।
पर कहीं अनुतरित्त प्रश्नों के साए में।
कहीं कोई आहत मन,
हर साँस में कुछ कहता, कुछ ढूँढ़ता
पोर-पोर बिखरता, कितनी ही परतों में,
फिर भी उमंगित, फिर भी विस्मित
चहक-चहक उड़ता फिर-फिर।