विशेषांक: कैनेडा का हिंदी साहित्य

05 Feb, 2022

रह जाता है अनकहा, अनगिना, जबकि कई बार 
उम्र के कई मोड़ पर पिता का वह प्यार॥
 
है अगर, पिता का आशीर्वाद सिर पर 
कोई भी न आए आँच, 
यह है उन दुआओं का असर। 
बटोर लो क़ुदरत का अनमोल वरदान यह, 
सहेज लो प्यार की इस धरोहर को। 
रह जाता है अनकहा, अनगिना, जबकि कई बार 
उम्र के कई मोड़ पर पिता का वह प्यार॥
 
जो इज़हार भी न कर पाता कई बार 
काम की मजबूरी, 
न व्यक्त पाने की झिझक, 
या हो कारण कन्धों पर ज़िम्मेदारी की क़तार 
पर लाता है जीवन में, 
सही अर्थों में अर्थ की बहार। 
युग की तरह समेट लो,
पल-पल बिताया साथ, 
ख़ुशनसीब है, जब तक 
मस्तक पर है वरदान सा हाथ। 
रह जाता है अनकहा, अनगिना, जबकि कई बार 
उम्र के कई मोड़ पर वह प्यार॥
 
पीता है चुपचाप जो सबके ग़मों को, 
पिता है यह न दिखा पाता प्यार की कमज़ोरी अपनी 
रहता है जो सदा चट्टान सा प्रहरी, 
बचाता जो सभी ख़तरों और मुसीबतों से। 
बाँध लो अंतर में, इस ज्ञान के समुन्दर को 
समेट लो अनुभव की नसीहत को ज़ेहन में। 
रहता है अगर पिता का आशीर्वाद, सिर पर, 
कोई भी न आए आँच, यह है उन दुआओं का असर। 
रह जाता है अनकहा, अनगिना, जबकि कई बार 
उम्र के कई मोड़ पर वह प्यार॥

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