अनाविर्भूत
अमरेश सिंह भदौरियासुनो!
कुछ महसूस करो
तुम...
मैं एक अहसास हूँ
तुम्हारे आसपास हूँ
तुम्हारे दिल को
तुम्हारी ख़ुशियों से
भर जाऊँगा...
बदले में कुछ लूँगा नहीं
अगर ये आहट तुमने
नहीं सुनी तो...
तो मेरा क्या है?
मैं समय हूँ...
ठहर सकता नहीं
एक दिन समय के साथ
मैं गुज़र जाऊँगा।
रह जायेंगी
कुछ यादें...
स्मृतियों के
पटल पर...
कुछ बिखरे हुए
और...
धुँधले हुए
अहसास!
जो तुम्हें देंगे
एक पल के लिए
असीम आनंद की
अनुभूति...
और...
और भी...
बहुत कुछ...
अनकहा...
अनाविर्भूत...!