मनुष्य

महेश रौतेला (अंक: 269, जनवरी द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

मनुष्य तू महान है
रूप में विराट है, 
जहाँ-जहाँ तू रहे
गहराई अगाध है। 
 
शिखर पर तू चढ़े
समुद्र में तू मिले, 
बलिदान से डरे नहीं
विजय से हटे नहीं। 
 
अनन्त को तू छुये
मलय सा तू बहे, 
प्यार के पुल लिये
आँसुओं में तू सजे। 
 
फ़सल सा तू उगे
पुष्प सा तू खिले, 
नींद से जगा तो
महान तू कर्म करे। 
 
सुख ये तुझे मिले
दुख सब तुझे चुभे, 
प्रयाण के पश्चात भी
स्वर अमर तुझे मिले। 
 
तू गुणों की खान है
नहीं तो रावण की बरात है, 
इक लिखा हुआ सत्य है
मिटा तो असत्य है। 

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