जिये हुए प्यार में

01-05-2024

जिये हुए प्यार में

महेश रौतेला (अंक: 252, मई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

जिये हुए प्यार में
लकीरें बहुत थीं, 
वन भी घने थे
नदियाँ सुशान्त थीं। 
 
कर्म के पथ पर
काँटों का जाल था, 
सीढ़ियाँ बनी थीं
स्वर्गारोहण शेष था। 
 
बंजर विकट थे
हरियाली प्रचुर थी, 
मनुज के इतिहास में
कुटिलता जटिल थी। 
 
जो जगा वह चला
यश का प्रवेश था, 
झूठ भी बहुत मिला
पर सत्य भी कम न था। 

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